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२९६७ ]
नेमिवुत्तंतु
[२९६४]
इय मुणेविणु हरिहि कु-वियप्पु वलभहु जंपइ – अहह कण्ह कण्ह मा इत्थ दप्पहि। जं तिहुयण-सिरिहि निहि अद्ध-चक्कि इहु इय वियप्पहि ॥ नेमि-कुमरु वउ गिहिसइ तुहुं पुणु पालिसि रज्जु । इय परिभाविवि सिरि-दइय हवसु स-कज्जह सज्जु ॥
[२९६५]
बद्ध-लक्खु जु असम-सुहयम्मि सिव-संगि सु किह रमइ गरुय-दुहइ संसार-सायरि । जो गहिहइ चरण सिरि रज्ज-मुहि न सु रमइ दुहायरि ॥ पउणीकय-धणसार-सिरिखंड-हरिणनाहिल्लु । कह-वि विलिंपइ अप्पु नहि असुइ-रसेण छइल्लु ॥
[२९६६]
जं पडिच्छइ गहिय-वरमाल जय-दुलह-तिलोय-सिरि विहुर-हियय भावाणुरागिण । सोहिलसइ किह कुहिय- काण-डुवि सहियउ विवेगिण ॥ जं च चउद्दह-वर-सिविण- सूइउ इहु संजाउ । तं हविहइ वावीसइमु जिणु नमि-जिण-अक्खाउ ॥
[२९६७]
तह वि न मुयइ कह-वि कुवियप्पु चिठेइ य भय-विहुरु जाव ताव कुल-देवयाइ वि । तह-रूवु निएवि हरि भणिउ सविह-देसम्मि आविवि ॥ नणु म-न वीहिसि कण्ह तुहूं जं सिरि-नेमिकुमारु । पढम-वयम्मि वि गिहिसइ चरणु तिलोयह सारु ॥ २९६६. ९. क. अक्खाओ.
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