SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१७ ३२३७ ] कण्हमरणु [३२३४] इय विसुज्झिर-चित्त-भावह वि आराहिय-नेमिहि वि तियस-सिहरि-थिर-पगइ-मणह वि । पसरंत-बहु-वेयमह फुरिउ हियइ तसु असुर-अहमु वि ॥ तयणंतर चिंतिउ हरिण अहह तेण पावेण । हउं असुहाविउ तवसिण वि सयल-नयरि-डाहेण ॥ [३२३५] किं न सु हविहइ समउ मह जेण तसु उयरह कइढिउण जणय-जणणि-सुहि-सयण-बंधव । वारवइ वि तारिसय कणय-रयण-मय स-घर-जायव । हउं अप्पणु इच्छिउ करिसु निग्गहिउण सु हयासु । इय चिंतिरु हरि नियडि-हुय- दुक्कय-काल-प्पासु ॥ [३२३६] मरिवि पत्तउ तइय-पुहईए पावेइ य स-कय-फल अच्छि-निमिसु अंतरु अ-पेच्छिरु । एत्थंतरि मुसलि जलु गहिवि पत्तु वेगेण पलविरु॥ अह परिचिट्ठइ मुत्तु हरि इय चिंतिरु मोणेण । चिहइ उवविसिउण सविहि किं पुण हरिहि खणेण ॥ __ [३२३७] कसिण मच्छिय वयणि लग्गंत अवलोइय हलहरिण तयणु जाव अवणीउ अंवरु । ता अ-गहिय-नाम दस पत्तु कण्हु दिउ अहंतरु॥ असरिस-नेह-ग्गह-वसिण जाय-हियय-संघटु । मुच्छ-विलंघलु पडिउ वलु मउलिय-मुह-कंदुटु ॥ ३२३६. ६. क. सत्तु. ८. क. उववेसिउण. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy