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२७३२ ]
नवमभवि पज्जुन्नचरिउ
[२७२९]
अव एत्तिय-मेत्ति कज्जम्मि परितम्महि किह णु तुहुँ तह करेसु हउं जेण अइरिण । तुह वंछिउ सिज्झिहइ इय भणेवि सह संव-कुमरिण ॥ मायंगहं रूविण गयउ कुंडिणीए पज्जुन्नु । गायइ गेउ तिरिक्ख-नर- सुर-मोहणु अ-सवन्नु ।
[२७३०]
तयणु रंजिउ तेण पुर-लोउ नीसेसु वि तह कह-वि जह गहेइ तमु चेव गुण-गणु । आवज्जिउ नरवइ वि संगहीउ वेयब्भियह मणु ॥ ता पन्नत्ति[३] घेरिइण रुप्पि-नरिंदिण तस्सु । वियरिय वेयब्भिय-तरुणि रंजिय-जय-हिययस्सु ॥
[२७३१]
अह पयासिवि नियय-आयारु वेयब्भि विवाहिउण मलिवि माणु रुप्पिहि नरिंदह । उप्पाइवि नायरहं चोज्जु तेउ पोसिवि उविंदह ॥ सो हरि-रुप्पिणि-अंगरुहु वारवइहिं संपत्तु । संवो वि-हु नाणा-विहिहिं चिट्टइ परिकीलंतु ॥
[२७३२]
अवर-वासरि कण्हु एगति सच्चाए विण्णत्तु - पिय भीरु नामु मह तणउ संविण । वाहिज्जइ चंदु जिह निच्च-कालु इच्छाणुरूविण ॥ इय तमु दुस्सीलह वसिण मह तणउ वि फिट्टेइ । ता निद्धाडहि संवु जिह मह नंदण छुट्टेइ ॥ २७३१. ५. क. पेसिवि.
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