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२७९९ ] मवमभवि कण्हजरसंघविग्गहु
६३ [२७९३] वसुदेवेणं विहियं सयंवरे रोहिणीए जे तइया ।
एक्कंग-मेत्तएण वि तं तुम्भे किं न संभरह ॥ [२७९४] तम्हा नेमि-जिणिंदो नमंसणिज्जो सुरासुराणं पि ।
__मोत्तूण पणामं तम्मि विक्कमो कस्स वि न जुत्तो ॥ [२७९५] इय हंसगेण भणिए मगहवई भणइ - हंत जइ एवं ।
तो नेमि-जिणाइ-जुयं पि तं वलं मज्झ तणयस्स ॥ [२७९६] कालस्स भएण पलाइऊण पच्छिम-दिसाए किं लुक्कं । किं वा सोरिय-महुराइ-मंडलो तेहिं परिचत्तो ॥
[२७९७]
तयणु हंसगु भणइ - नणु देव नय-मग्गु इहु एरिसउ सु-पुरिसाहं न य कायरत्तणु । जं न फलइ विक्कमु वि दव्व-खेत्त-कालाइयहं विणु ॥ तदिण-जायउ केसरि वि करिहिं कुंभ न दलेइ । न य अइ-वालउ विसहरु वि कं-पि कह वि डंकेइ ॥
[२७९८] __अवि य केसरि करइ संकोवु मेसो वि अवक्कमइ हणिउ-कामु गुरुयर-पहाविण । इय गरुय-विचिट्ठियहं एरिसाहं किं पहु वियारिण ॥ कालस्स वि तहं सम्मुहहं धावंतहं किं वित्तु । इय परिभावउ नाहु इग- ठाणि धरेविणु चित्तु ॥
[२७९९]
एम्व हंसग-सचिव पडिवक्खु उववन्निरि पुणु पुणु वि जाव कुविवि निवु किं-पि पभणइ । ता डिभग-नामु निव- पुरउ सचिवु एरिसु पयंपइ ॥ पहु न पसिद्धिण हवइ जउ किंतु सुकय-जोगेण । इय मुणिऊण महा-यसहं किमियर-भणियव्वेण ॥ २७९९. १. एंव. २. क. उवववनिरि.
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