________________
[२८००
नेमिनाहचरिउ [२८००]
किंतु पुरिसिण जउ महंतेण गहियव्वउ नीइ-पहु सो उ हवइ दुग्गावलंविण । दुग्गं पि-हु ति-विहु इह जाणियव्वु नय-समय-विउसिण ॥ तम्मज्झम्मि य पढमु जल- दुग्गु वीउ गिरि-दुग्गु । तइउ निजूह-दुग्गु इय मणि धरिऊण समग्गु ॥
[२८०१]
सम-महीयलि निवइ-वसहेहिं कायव्वु निजूह-मउ दुग्गु अजिउ पडिवक्ख-लक्खिहि । तमसेस-निजूह-वरु कहिउ अस्थि रण-रंग-दक्खिहि ॥ पन्नासहिं नेमिहिं सहिउ सहसारय-संजुत्तु । कीरउ वहु-गण-निव-मइउ चक्कव्वूह निरुत्तु ॥
[२८०२]
जुत्ति-जुत्तउं एहु इय मुणिवि जरसंध-नराहिवइ चक्कवूह-रयणाए निय-वलु । परिसंचइ एहु पुणु मुणिवि सयल जायविहिं अ-विचलु ॥ एरिसि चक्क-निजूहि कइ आ-भवु सत्तु-समूहु । दुस्सज्झउ इय चिंतिउण कारिउ गरुड-व्वूहु ॥
[२८०३]
एत्थ-अंतरि खयर-नरनाह वसुदेव-पक्खाणुगय मिलिय खणिण वलि वासुदेवहं । सउरिस्स उ के-वि रिउ समुहिहय जरसंध-सेवह ॥ अह हविहइ दुह-सज्झु रिउ सहियउ खयर-गणेण । ता वसिकिज्जहुं ते खयर इय निच्छिउण मणेण ॥ २८०१. ३. क. पडिक्वखु. ८. निवइमउ.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org