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रिउ गहिय-असेस - सिरिलक्कडियहं लग्गिउण खंड-हत्थिण माणविण ता महावि मुक्कु मई
[ २८७६]
समर - निवडिय -सयल - सुहि-सयणु
परिजंपिरु मरिसि धुवु दिव्वाउह मुक्क वहुता निट्ठिय- आउहु मगह - कालव निय धणु-रयणु
नेमिनाहचरिउ
[२८७७]
अरिरि वालिस तुर्ह अ-संवद्ध
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रह-रह मज्झ लहु रि-वग्ग-विणासयरु दूरिण अहरिय - तिमिर भरु चक्क रयणु संपत्तु अह
लज्जमाणु परिहरिवि अज्ज-वि । सुहिण अच्छि तुंग तुहुं स घरि वि ॥ किं वोल्लाविण । गच्छहि रहिउ भएण ॥
[२८७८]
भणइ पुणु - धिसि मज्झ सामत्थु
किमु रज्जेण वि इमिण जं नाणाविह- समरगोपय-मिति इमम्मि रणि अEE निवोलिङ तेम्व जिम्व
२८७६. ५. तुहुं तुहु. २८७९. ५. क. सुंदर.
इय भणेवि जरसंघ - निविण वि । भेय ताईं पsिहणिय हरिण वि ।। सामि विसायावन्तु । चयइ पयट्ट - अवन्नु ||
[२८७९]
इ स - खेयह मगह - नाहस्सु
हा धिरत्थु मह सुहड - वाह | जलनिहिस्सु हउं गउ वि पारह ॥ गोवाणि एएण । उज्झिस्सामि जिण ॥
पत्त - उदय-रवि- विंव भासुरु | सुर - विइन्न- माहप्प- सुंदरु ॥ चिर-कय-मुह-सय-लब्भु । महाविर पगब्भु ॥
[ २८७६
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