________________
३०९९ ]
६८९
नेमिवृत्तंतु [३०९६]
तीए सह बहु-भेय-निव-दुहिय इयराउ वि पव्वइय जे य आसि किर धण-भवाउ वि । धणदत्त-धणदेव-इय- नाम-पयड सोयरय पहुणु वि ॥ ते वि-हु निय-निय-पुव्व-भव- सुमरण-कय-पडिवोह । उज्झिय-रज्ज विमुक्क-गिह चरणु लिंति हय-मोह ॥
[३०९७]
सु वि मइप्पह-सचिवु चारित्तु गेण्हेइ अह तिन्नि वि ति गणहरिद हुय पहु-पसाइहिं । हरि मुसलि दसार दस सावयत्तु गेहंति सु-विहिहिं ॥ सिरि-सिवदेवि वि रोहिणिहिं देवइ-जंववईहि । सहिय गहेइ अणुव्वयई सह जायविहिं वहहिं ॥
[३०९८]
एम्ब पढमि वि समवसरणम्मि उप्पन्नि चउव्विहइ संघि तियस गय नियय-ठाणह । वहु-गुण-गण-रत्त-मण जायवा वि गय नयरि-सम्मुह ॥ सामि वि सरइ अइक्कमिरि धरणीयलि विहरंतु । मलय-विसय-चूडारयणि भदिल-पुरि संपत्तु ॥
[३०९९]
नागदत्तह वणिहि गिहिणीए सुलसाए वेसमण- मुरिण सउरि-सुय आसि वियरिय । जे ते-वि विवोहिउण नेमि-जिणिण चारित्तुं गाहिय ॥ तयणंतर दसविह-समण- किरिय-विहाणासत्त । भाविण सेवहिं जिण-कहिय- चाउज्जाम-चरित्त ॥ ३०९६. ३. क. भवाओ. ख. भवउ. ३०९७. ३. क. पह for पहु.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org