________________
२८१५]
कण्हजरसंधविग्गहु
६२७
[२८१२]
तयणु कण्हिण एहु जुत्तु त्ति परिचिंतिवि दाहिणहं नेमि कुमरु विण्णविवि मुक्कउ । उत्तरय-दिसीए पुणु पत्थु मज्झ-देसे उ थक्कउ ॥ हय-गय-संदण-सुहड-भर- खोहिय-अरि-कुल-दिहि । कय-सन्नाहु महा-सुहड सहियउ सु अनाहिहि ॥
[२८१३]
तयणु कण्हिण विविह-वयणेहिं ते तिन्नि-वि तह कह-वि भणिय जेण रण-रंग-पुलइय । रिउ-चक्क-निजूहयहं तुंवि अरय-नेमिहिं वि संठिय ॥ पविसिवि समर-वसुंधरहं आलोडहिं पर-चक्कु । तह कहमवि जह अइरिण वि निरु सरणेण विमुक्कु ॥
[२८१४]
तत्थ को-वि-हु मयउ ठाणे वि कु-वि नछ दिसो-दिसिहि को-वि सरणि पविसेइ नेमिहि । कु-वि गिण्हइ मुहिण तिण को-वि सविहि गउ नियय सामिहि ॥ नेमि-कुमारिण रुप्पि-निवु निव-सय-सहस-समेउ । मुक्कउ लीलाइ वि जिणिवि हय-विप्पहउ करेउ ॥
[२८१५]
__ इय खणद्धिण तेहिं भिन्नम्मि तिहि ठाणिहिं सत्तु-चलि जल-निहिम्मि इव सरिय-सलिलई । पविसंति कयाउहई अणुपहेण जायवहं सेन्नई ॥ सह पंडव-निवइहिं समरु कउरव-निवर्ह पयट्टु । ता कउरव-निव-गणु मयउ गरुय-पहार-दुह१ ॥ २८१३. ५. निमिहिं. २८१५. २. क. ठाणिहि.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org