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________________ ६५७ २९४८] नेमिवुत्तंतु [२९४५] तयणु अक्खिउ हरिहि सब्भावु संथुणियउं हरिहि वलु तह स-तोसु भीमेण पभणिउ । पहु तुम्ह परिक्ख-कइ ताव कडगु मई सयलु अवणिउ ॥ अह - अरि सत्त परिक्खि सह मह अज्ज-वि एहि ति । भणिवि स-कोविण केसविण ते निद्धाडिय झत्ति ॥ [२९४६] अह ति पंच वि भइण कंपंत नीहरिउण तक्खणि वि पंडु-विसय-मज्झम्मि आविवि । अमरावइ-सरिस-सिरि पंडु-महुर-पुरि पवर ठाविवि ॥ चिट्टहिं पंच वि स-परियण- नियय-कुडुंव-समेय । इह-परलोइय-कज्ज-विहि- पयडण-विमल-विवेय ॥ [२९४७] तम्मि पुणु सिरि-हत्थिणउरम्मि सिरि-अज्जुण-निव-तणय- पुत्तु रज्ज-वावारि संठिउ । हरि वहुविह-निव-गणिण सुप्पसत्थ-वत्थूहिं अंचिउ ॥ कम-जोगिण सिरि-वारवइ- नयरिहिं आगंतूण । चिट्ठइ विसयासत्तु निय- कित्ति जगि विखिविऊण ॥ [२९४८] अवर-वासरि कुमर-नियरेण परियरियउ नेमि-पहु कीलमाणु आउहहं सालहं । संपत्तउ अह नियइ चक्कु संखु गय चावु लीलहं ॥ अवरु वि हरि-पहरण-निवहु सच्चवेइ दिप्पंतु । तयणतरु कोउग-वसिण सामिउ ईसि हसंतु ॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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