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नेमिनाहचरित [३२०१]
अह ति निमुणिर करुण उल्लाव नीसेस-नायर-जणहं पुरि-दुवारि कहमवि पहत्तय । ता तियसाहमिण तिण पुरि-कवाड दु-वि परिजलंतय ॥ झत्ति पिहेवि नियंतियई गाढ इंदकीलेण । तयणंतरु हलहर-हरिहिं हणिउण चलण-तलेण ॥
[३२०२]
चुन्न-पेसिण दु-वि कवाडाइं लीलाइ वि पीसियइं किंतु रहु न ते तरहिं कढिउ । सोयंति य वाहु-जल- भरिय-नयण - नणु कह सु चड्डिउ ॥ अम्ह मडप्फरु जेण लहु कोडि-सिला उक्खित्त । संपइ पुणु इहि अम्हि रह- आयड्ढणि वि अ-सत्त ॥
[३२०३] _ इय स-खेयहं कण्ह-हलहरहं सविहम्मि समुल्लविउ गयण-ठिइण तिण असुर-अहमिण । नणु भणिउ अहेसि मई धुवु नियाणु तइयहं कुणंतिण ॥ द-चि जि तुम्हि रक्खेसु हउं अणु-मेत्तं पि न सेसु । ता मिल्लहु निय-पिउ-जणणि-रक्खणि माण-विसेसु ॥
[३२०४]
तयणु सउरिण पियहिं सहिएण संलत्तउं - नंदणहु जाहु तुम्हि अप्पाणु रक्खहु । मा अम्हहं कारणिण तुमि वि सुयहु जम-गेहु पेक्खहु ॥ तुब्भिहिं जीवंतेहिं धुवु जीवइ जायव-चंसु । इहरह जायव-नामह वि नित्तुलु हविहइ भंसु ॥
३२.३. १. क. संखेयह.
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