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________________ [२५०२ ५६४ नेमिनाहचरिउ [२५०२] इय सुणेविणु भणइ हरि - पाव पुव्वं पि-हु बंधु मह निहय आसि जे तई अयाणुय । कय रक्ख अप्पह वहुय कुगइ-मग्ग-पयडणिण भाणु य ॥ पाव-तरुहं तहं सयलहं वि फलई स-हस्थिहि लेसु । कि न मह अक्खिय एह कह इय पुणु म-न जंपेसु ॥ [२५०३] इय भणंतु वि कण्हु उप्पइवि पडिऊण य सामरिमु कंस-मंचि तमु मउडु पाडिवि । भय-तरलिय-नयण-दलु दलिय-देह-भूसणु निहोडिवि ॥ तह कहमवि मुट्ठिण हणिउ उत्तिम अंगि हयासु । हुयउ कयंतह अतिहि जिह सो गय-जीविय-आसु ॥ [२५०४] एत्थ-अंतरि हलहरेणावि गुरु-कोव-वसुल्लसिय- सहस-गुणिय-वीरिय-विसेसिण । सो मुट्ठिग-मल्लु विणिवद्ध समगु निय-पष्टि-देसिण ॥ गल-कंदलु सु-नियंतिउण सुदढ-जोत्त-चट्टेण । तह भीडिउ कडियडिण सह जह समगु मरट्टेण ॥ [२५०५] दलिय-विग्गहु खुडिय-नयणिल्लु परिगलिय-रुहिर-प्पवहु रुद्ध-सासु संवरिय-चेयणु । सु कयंतह अतिहि हुउ तयणु दह्र पडिवक्ख-भेयणु ॥ हरि वलभदु वि दुल्ललिउ करयल-कय-करवाल । कंसह सुहड समुच्छरिय नं अप्पह खय-काल । २५०२. ५. कुमइ. २५०५. ३. क. मुणिय; ४. क. कडिकडिण. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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