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________________ ५६९ २५२५ ] नवमभवि जायवजरसंधविरोहु तहा हि - [२५२२] तुम्ह सयलहं निवहं आइसइ जरसंधु नरिंदु जह जेहिं मज्झ जामाउ निहणिउ । ते दो-वि हु कण्ह-वल पेसवेसु विक्खेवु विहणिउ ॥ दुद्ध पियंतहं गोउलि वि ताहं क लग्ग अ-विज्ज । मत्थह मज्झि ण उग्गलहिं मंदालोचिय कज्ज । [२५२३] दोण्ह गोवहं कज्जि तुम्हहं वि जरसंघ-नराहिविण सह विरोहु नो जुत्ति-जुत्तउ । दोसारिह अप्पिउण सुहिण नियय-रज्जाइं चिंतउ ॥ अह सोमग-दूयह पुरउ समुदविजय-नरनाहु । भणइ - सम्मु परिभावि तुहुं एयहं को अवराहु ॥ __ [२५२४] विणु वि दोसहं हणिवि छ-व्वंधु वर-लक्खण-रूव-धर जाय-मेत्त कंसिण निवाइय । कण्हस्स वि हणण-कइ वाल उ[ण] वि परिमुक्क घाइय॥ पत्तावसरिण कण्हिण वि जइ निहणिउ निय-सत्तु । ता खत्तिय-कुल-संभविहि भन्नइ किह-णु अ-जुत्तु ॥ [२५२५] रुडु एयहं निवइ जरसंधु जामाउइ निहणियइ तम्मि रुटुइ हि वंधु-घाइण । सो निहणिउ एगु तह सावराहु निय-पुरिसयारिण ॥ एयह वंधव हय वहुय सिसु अविहिय-अवराह । जुत्तु अ-जुत्तु व कवणु इय तं पि कहसु दुय-नाह ॥ २५२५. ७. क. अवराहु. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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