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नवममधि वसुदेववृत्तंतु
[२१३७]
तयणु पुच्छइ ससुर-पासम्मि किं एहु दीसइ अवरु नयरु किं-पि ता भणइ ससुरउ । इह नरवइ-कन्नयह जोग्गु रम्मु किर आसि विहियउ ॥ एहु सयंवर-मंडवउ किंतु अज्ज सा कन्न । दुस्सह-चाहि-समागमिण हुय गलंत-चेयन्न ।
[२१३८]
अह नियत्तिवि सयल निव-कुमर संजाय विवन्न-मुह निय-निएसु ठाणेसु अइगय । वसुदेवु वि कइ-वि पय देइ जाव ता तहिं पहुत्तय ॥ सेट्टि-पुरोहिय-मंडलिय- सचिवाहिव-सामंत । उचिओचिय-ठाणिहि वि ठिय हरिसिण पुलइज्जंत ॥
[२१३९]
एत्थ-अंतरि तहिं जि संपत्तु संतेउरु धरणिवइ किं तु भग्ग-आणाल-हत्थिण । कड्ढेविणु रह-वरह गहिय एग निव-कन्न सुंडिण ॥ ता हा-हा-रवि पसरियइ मिलियइ नायर-लोइ । तसु पुणु करि-अहमह समुहु पगु वि न वियरइ कोइ ।
[२१४०
किंतु सउरिण समुहु धावेवि वामोहिवि दुट्ठ-करि कड्ढिऊण वहु-दुह-करालिय । परिमुक्क पासाय-तलि निय-करेहिं सा निवइ-वालिय ॥ तक्खणमवि सयलहं महिहिं जायउ साहुक्कारु । सेट्टिण पुणु महया महिण निय-घरि नियउ कुमारु ॥ २१४०.६ क. गहिहिं.
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