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(५०)
श्री विपाकसूत्र
[प्राक्कथन
जैनागमों की संख्या वर्तमान में पूर्वापरविरोध से रहित अथच स्वतःप्रमाणभूत जैनागम ३२ माने जाते हैं । उन में ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेद और एक आवश्यक सूत्र है । ये कुल ३२ होते हैं। उन में ११ अङ्गसूत्र निम्नलिखित हैं
१-आचाराङ्ग, २-सूत्रकृताङ्ग, ३-स्थानाङ्ग, ४-समवायाङ्ग, ५-भगवती, ६-ज्ञाताधर्मकथा, ७-उपासकदशा, ८-अन्तकृद्शा , ६-अनुत्तरोपपातिकदशा, १०-प्रश्नव्याकरण, *११-विपाकश्रुत ।.
१-ौपपातिक, २-राजप्रश्नीय, ३-जीवाभिगम, ४-प्रज्ञापना, ५-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ६-सूर्यप्रज्ञप्ति, ७-चद्रप्रज्ञप्ति, ८-निर्यावलिका, ६-कल्यावतंसिका, १०-पुष्पिका, ११-पुष्पचूलिका,१२-वृष्णिदशा, ये बारह उपाङ्ग कहलाते हैं।
चार मूलसूत्र-१-नन्दी, २-अनुयोगद्वार, ३-दशवैकालिक, ४-उत्तराध्ययन । चार छेद सूत्र-१-वृहत्कल्प, २-व्यवहार, ३-निशीथ और ४-दशाश्रुतस्कन्ध ।
इस प्रकार अङ्ग, उपाङ्ग, मूल और छेद सूत्रों के संकलन से यह संख्या ३१ होती है, उस में आवश्यकसूत्र के संयोग से कुल आगम ३२ हो जाते हैं। ये ३२ सूत्र अर्थरूप से तीर्थकरप्रणीत हैं तथा सूत्ररूप से इन का निर्माण गणधरों ने किया है और वर्तमान में उपलब्ध आगम आर्य सुधर्मास्वामी की वाचना के हैं, ऐसी जैनमान्यता है । अङ्गसूत्रों में श्रीविपाकश्रुत का अन्तिम स्थान है, यह बात ऊपर के वर्णन से भलीभाँति स्पष्ट हो जाती है । अब रह गई यह बात कि विपाक श्रुत में क्या वर्णन है ? इस का उत्तर निम्नोक्त है
_ विपाकश्रुत यह अन्वर्थ संज्ञा है । अर्थात् विपाकश्रुत यह नाम अर्थ की अनुलता से रखा गया है । इस का अर्थ है- वह शास्त्र जिस में विपाक-कमपल का वर्णन हो । कर्मफल का वर्णन भी हो प्रकार से होता है । प्रथम-सिद्धान्तरूप से, द्वितीय-कथाओं के रूप से । विपाकश्रुत में कर्मविपाक का वर्णन कथाओं के रूप में किया गया है, अर्थात् इस आगम में ऐसी कथाओं का संग्रह है, जिन का अंतिम परिणाम यह हो कि अमुक व्यक्ति ने अमुक कम किया था, उसे अमुक फल मिला । फल भी दो प्रकार का होता है--सुखरूप और दुःखरूप । फल के द्वैविध्य पर ही विपाकश्रुत के दो विभाग हैं। एक दुःखविपाक दूसरा सुखविपाक । दुःखविपाक में दुःखरूप फल का और सुखविपाक में सुखरूप फल का वर्णन है । दुःखविपाक के दश अध्ययन हैं । इन में दस ऐसे व्यक्तियों का जीवनवृत्तान्त वर्णित है कि जिन्हों ने पूर्वजन्म में अशुभ कर्मों का उपार्जन किया था। सुखविपाक के भी दश अध्ययन हैं। उन में दश ऐसे व्यक्तियों का जीवनवृत्तान्त अङ्कित है कि जिन्हों ने पूर्वजन्म में शुभकर्मों का उपार्जन किया था। दोनों श्रेणियों के व्यक्तियों को फल की प्राप्ति भी क्रमशः दुःख और सुख रूप हुई। दोनों के समुदाय का नाम विपाकश्रुत है । आधुनिक शताब्दी में जो विपाकश्रुत उपलब्ध है उस में तथा प्राचीन विपाकश्रुत में अध्ययनगत तथा विषयगत कितनी विभिन्नता है ? इस का उत्तर श्रीसमवायांग सूत्र तथा श्रीनन्दीसूत्र
*यद्यपि अङ्गसूत्र बारह हैं इसीलिए इस का नाम द्वादशाङ्गी है, तथापि बारहवां अङ्ग दृष्टिवाद इस समय अनुपलब्ध है, इसलिये अङ्गों की संख्या ग्यारह उल्लेख की गई है।
इस का दूसरा नाम कल्पिका भी है ।
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