Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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संबंध है अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक वारित्र ए तीनों मिलकर मोक्षके मार्ग हैं । सम्यक् शब्दका अर्थ प्रशंसा है। इसलिये चाहै सम्यग्दर्शन आदि कह दिया जाय, चाहै प्रशस्तदर्शन आदि कहा, जाय एक ही बात है।
पूर्वपदसामानाधिकरण्यात्तद्व्यक्तिवचनप्रसंग इति चेन्न मोक्षोपायस्यात्मप्रधानत्वात् ॥ ३८ ॥ ___समानाधिकरणका अर्थ एक जगह रहना है जिनका आपसमें विशेषण विशेष्यभाव होता है वे नियमसे एक जगह रहते हैं जिस तरह घडा पीला है यहांपर पीला विशेषण और घडा विशेष्य है जिस प्रकार रूप घडामें रहता है उसीप्रकार घडा भी अपने स्वरूप घडामें रहता है। सम्पग्दर्शन ज्ञान और चारित्र मोक्षमार्ग है यहांपर सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्र विशेष्य और मोक्षमार्ग विशेषण है और
जहांपर सम्यग्दर्शनादि है वहींपर मोक्षमार्ग है क्योंकि सम्यग्दर्शन आदि स्वरूप ही मोक्षमार्ग है। तथा र विशेष्यके जो लिंग और वचन हैं वे ही विशेषणके होते हैं। जब विशेष्य 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि' हूँ यहां नपुंसक लिंग और बहुवचन है तो विशेषण मोक्षमार्गमें भी बहुवचन और नपुंसक लिंग होना ,
चाहिये वैसी अवस्थामें “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गाणि" ऐसा सूत्र बनाना चाहिये ? सो ठीक नहीं। मोक्षका उपाय स्वभावकी प्रधानतासे है, जिस स्वभावंसे मोक्षका उपाय बतलाया गया है वह है स्वभाव सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्रकी एकतारूप है, स्वयं एक और पुलिंग है इसलिये मोक्षमार्गको प्रधानता है। इस रीतिसे 'साधवः प्रमाणं, सब साधु प्रमाण स्वरूप हैं' इहांपर प्रमाण और साधुओंका समानाधिकरण वा विशेषण विशष्य भाव रहनेपर भी जिसतरह विशेष्य साधु शब्दका लिंग-पुलिंग
१ यह नियम अभिन्न पदार्थोंके लिये है।
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