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समयसार अनुशीलन
अध्यात्मनय दो प्रकार के होते हैं (२) निश्चयनय ।
व्यवहारनय भी दो प्रकार का होता है
और (२) सद्भूतव्यवहारनय ।
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(१) व्यवहारनय और
(१) असद्भूतव्यवहारनय
अद्भूत और सद्भूत व्यवहारनय भी उपचरित और अनुपचरित के भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं। इसप्रकार कुल मिलाकर व्यवहारनय चार प्रकार का हो गया
(१) उपचरित - असद्भूतव्यवहारनय (२) अनुपचरित - असद्भूतव्यवहारनय (३) उपचरित - सद्भूतव्यवहारनय (४) अनुपचरित - सद्भूतव्यवहारनय निश्चयनय भी दो प्रकार का होता है (१) अशुद्धनिश्चयनय और (२) शुद्धनिश्चयनय ।
शुद्धनिश्चयनय तीनप्रकार का होता है - (१) एकदेशशुद्धनिश्चयनय
(२) शुद्धनिश्चयनय या साक्षात् शुद्धनिश्चयनय और (३) परमशुद्धनिश्चयनय ।
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इसप्रकार कुल मिलाकर निश्चयनय भी चार प्रकार का हो गया । . ये चार प्रकार के व्यवहार और चार प्रकार के निश्चय - कुल मिलाकर आठ नय अध्यात्मनय कहे जाते हैं ।
जो नय संयोग का ज्ञान कराये, उसे असद्भूतव्यवहारनय कहते हैं । शरीर, स्त्री- पुत्रादि, मकानादि को अपना कहना, आत्मा को उनका कर्ता - भोक्ता - ज्ञाता कहना इसी नय का काम है ।
स्त्री- पुत्रादि, मकानादि तथा ग्राम-नगरादि दूरस्थ परपदार्थों को आत्मा को उनका कर्ता-भोक्ता - ज्ञाता कहना
अपना कहना,