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समयसार अनुशीलन
174 होना – यह पर्यायस्वभाव है, इससे नित्य नियत एकरूप दिखाई नहीं देता।" __ शक्ति के अविभागी प्रतिच्छेदों का घटना-बढ़ना षट्गुणीहानिवृद्धिरूप ही होता है । अत: उक्त कथन से यह भी सिद्ध है कि शुद्धनय के विषय में षट्गुणीहानि-वृद्धिरूप पर्याय भी नहीं आती। ___ इस गाथा के भावार्थ में मुनिराज श्री वीरसागरजी महाराज भी नियत का अर्थ षट्गुणीहानि-वृद्धि से रहित करते हैं।
प्रश्न -यह षट्गुणीहानि-वृद्धि क्या है, जिसका निषेध शुद्धनय के विषयभूत भगवान आत्मा में नियत विशेषण के माध्यम से किया जा रहा है?
उत्तर -षट्गुणीहानि-वृद्धि अगुरुलघुगुण की स्वभाव अर्थपर्याय है। जैसा कि अलापपद्धति के पर्यायाधिकार में कहा गया है - ___ "अगुरुलघुविकाराः स्वभावार्थपर्यायास्ते द्वादशधा षड्वृद्धिरूपाः षड् ढानिरूपाः अनन्तभागवृद्धिः असंख्यातभागवृद्धिः संख्यातभागवृद्धिः संख्यातगुणवृद्धिः असंख्यातगुणवृद्धि अनन्तगुणवृद्धिः इति षट् वृद्धि तथा अनन्तभागहानिः असंख्यातभागहानिः संख्यातभागहानिः संख्यातगुणहानिः असंख्यातगुणहानिः अनन्तगुणहानिः-इति षट्हानि एवं षट्वृद्धि षड्ढानिरूपा ज्ञेयाः।
अगुरुलघुगुण का परिणमन स्वाभाविक अर्थपर्यायें हैं। वे पर्यायें बारह प्रकार की हैं - छह वृद्धिरूप और छह हानिरूप। अनन्तभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि, संख्यात भागवृद्धि,
१. प्रवचनरत्नाकर (हिन्दी) भाग १, पृष्ठ २४१ २. आचार्य देवसेन : आलापपद्धति, पृष्ठ ५३-५४, प्रकाशक श्री शान्तिवीर
दि. जैन संस्थान, महावीरजी (राजस्थान)