________________
समयसार अनुशीलन
गहिरी गंभीर खाई ताकी उपमा बनाई,
नीचौ करि आनन पताल जल पीयाँ है । ऐसो है नगर यामैं नृप कौ न अंग कोऊ,
यही चिदानन्द सौं सरीर भिन्न कीयौ है | जामैं बालपनौ तरुनापौ वृद्धपनौ नाहिं,
आयु परजंत महारूप महाबल है । विना ही जतन जाकै तन मैं अनेक गुन,
अतिसं विराजमान काया निर्मल है ॥ जैसे बिनु पवन समुद्र अविचलरूप,
तैसें जाकौ मन अरु आसन अचल है । ऐसौ जिनराज जयवंत होउ जगत मैं,
जाकी सुभगति महा सुकृत कौ फल है । ( दोहा )
जिनपद नांहि शरीर को, जिनपद चेतन माँहि । जिनवर्णन कछु और है, यह जिनवर्णन नांहि ॥
278
अत्यन्त ऊँचे किले के कंगूरे इसप्रकार शोभायमान हो रहे हैं कि मानों आकाश को निगलने लिए किले रूपी विकराल जानवर ने दाँत निकालकर ऊपर की ओर किये हैं और चारों और घने - घने उपवनों ने घेरा डालकर सम्पूर्ण भूमि लोक को घेर लिया है। गहरी गंभीर खाई की उपमा नीची गर्दन करके पाताल का पानी पी लेने से दी गई है ।
इसप्रकार यद्यपि नगर सर्वांग सुन्दर है; तथापि उसमें राजा का कोई अंग नहीं है। जिसप्रकार नगर से राजा जुदा है; उसीप्रकार देह से चिदानन्द भगवान आत्मा भिन्न ही है ।
जिन की देह में वालपन, जवानी और वृद्धपना नहीं है, आयु पर्यन्त सुन्दरतम रूप और महान बल रहता है; जिनमें बिना प्रयत्न के अनेक गुण और अतिशय विराजमान है और जिन की काया निर्मल है; जिसप्रकार हवा के न चलने पर समुद्र अविचल रहता है; उसीप्रकार