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गाथा ४९
- इसप्रकार छह प्रकार से रूप के निषेध से आत्मा अरूप है । (१) पुद्गलद्रव्य से भिन्न होने के कारण जीव में गंधगुण नहीं है; अतः जीव अगंध है।
(२) पुदगलद्रव्य के गुणों से भिन्न होने के कारण जीव स्वयं भी गंधगुण नहीं है; अत: जीव अगंध है।
(३) परमार्थ से जीव पुद्गलद्रव्य का स्वामी भी नहीं है, इसलिए वह द्रव्येन्द्रिय के माध्यम से गंध नहीं सूंघता; अत: अगंध है।
(४) स्वभावदृष्टि से जीव क्षायोपशमिकभावरूप भी नहीं है, इसलिए वह भावेन्द्रिय के माध्यम से भी गंध नहीं सूंघता; अत: अगंध है।
(५) समस्त विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप जीव का स्वभाव होने से, वह केवल एक गंधवेदना परिणाम को पाकर गंध नहीं सूंघता; अत: अगंध है।
(६) समस्त ज्ञेयों का ज्ञान होने पर भी सकल ज्ञेय-ज्ञायक के तादात्म्य का निषेध होने से गंध के ज्ञानरूप में परिणमित होने पर भी स्वयं गंधरूप परिणमित नहीं होता; अतः अगंध है।
- इसप्रकार छह प्रकार से गंध के निषेध से आत्मा अगंध है। (१) पुद्गलद्रव्य से भिन्न होने के कारण जीव में स्पर्शगुण नहीं है; अत: जीव अस्पर्श है।
(२) पुद्गलद्रव्य के गुणों से भिन्न होने के कारण जीव स्वयं भी स्पर्शगुण नहीं है; अत: जीव अस्पर्श है।
(३) परमार्थ से जीव पुद्गलद्रव्य का स्वामी भी नहीं है, इसलिए वह द्रव्येन्द्रिय के माध्यम से स्पर्श को नहीं स्पर्शता; अत: अस्पर्श है।
(४) स्वभावदृष्टि से जीव क्षायोपशमिकभावरूप भी नहीं है, इसलिए वह भावेन्द्रिय के माध्यम से भी स्पर्श को नहीं स्पर्शता; अत: अस्पर्श है।