________________ 425 गाथा 50-.55 इन गाथाओं पर लिखी गई आत्मख्याति टीका का संक्षिप्त सार इसप्रकार है - "(1) काला, हरा, पीला, लाल और सफेद - ये पाँच प्रकार के वर्ण जीव नहीं हैं ; क्योंकि ये पुद्गलद्रव्य के परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं। (2) सुगंध और दुर्गंध - ये दो प्रकार की गंध जीव नहीं है; क्योंकि ये पुद्गलद्रव्य का परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं। (3) कडुवा, कषायला, चरपरा, खट्टा और मीठा - ये पाँच प्रकार के रस जीव नहीं हैं; क्योंकि ये पुद्गलद्रव्य के परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं। (4) चिकना, रूखा, ठण्डा, गर्म, हल्का, भारी, कोमल और कठोर - ये आठ प्रकार के स्पर्श जीव नहीं हैं; क्योंकि ये पुद्गलद्रव्य के परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं। (5) स्पर्शादि चारों भावरूप सामान्य परिणाम मात्र रूप भी जीव नहीं है, क्योंकि यह रूप पुद्गलद्रव्य का परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न है। (6) औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण - ये पाँच प्रकार के शरीर भी जीव नहीं हैं; क्योंकि ये पुद्गलद्रव्य के परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं। (7) समचतुरस्त्र, न्यग्रोधपरिमंडल, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुंडक - ये छह प्रकार के संस्थान भी जीव नहीं हैं; क्योंकि ये पुद्गलद्रव्य के परिणाममय होने से अपनी अनुभूति से भिन्न हैं। (8) वज्रवृषभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, कीलिका और असंप्राप्तासृपाटिका - ये छह प्रकार के संहनन भी जीव नहीं