Book Title: Samaysara Anushilan Part 01
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 438
________________ 432 समयसार अनुशीलन क्योंकि जीव उनसे उपयोग गुण से अधिक है / - ऐसा जानना चाहिए। उक्त गाथाओं का भाव स्पष्ट करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र लिखते "सफेद रुई से बने हुए एवं कुसुम्बी (लाल) रंग से रंगे हुए वस्त्र के लाल रंगरूप औपाधिक भावों की भाँति पुद्गल के संयोगवश अनादिकाल से जिसकी बंधपर्याय प्रसिद्ध है - ऐसे जीव के औपाधिक भावों का अवलम्बन लेकर प्रवर्तित होता हुआ व्यवहारनय पर्यायाश्रित होने से दूसरे के भाव को दूसरे का कहता है और निश्चयनय द्रव्याश्रित होने से केवल एक जीव के स्वाभाविक भावों का अवलम्बन लेकर प्रवर्तित होता हुआ दूसरे के भाव को किंचित् मात्र भी दूसरे का नहीं कहता अर्थात् दूसरे के भाव को दूसरे का कहने का निषेध करता है। इसलिए वर्ण से लेकर गुणस्थान पर्यन्त जो 29 प्रकार के भाव हैं, वे व्यवहारनय से जीव के हैं और निश्चयनय से जीव के नहीं हैं - ऐसा कथन योग्य है। __ जिसप्रकार जलमिश्रित दूध का जल के साथ परस्पर अवगाहरूप संबंध होने पर भी स्वलक्षणभूत दुग्धत्वगुण के द्वारा व्याप्त होने से दूध जल से भिन्न प्रतीत होता है। इसलिए अग्नि का उष्णता के साथ जिसप्रकार का तादात्म्यरूप संबंध है, जल के साथ दूध का उसप्रकार का संबंध न होने से निश्चय से जल दूध का नहीं है। इसीप्रकार वर्णादिरूप पुद्गलद्रव्य के परिणामों के साथ मिश्रित इस . आत्मा का पुद्गल द्रव्य के साथ परस्पर अवगाहरूप संबंध होने पर भी स्वलक्षणभूत उपयोग गुण के द्वारा व्याप्त होने से आत्मा सर्व द्रव्यों से भिन्न प्रतीत होता है ; इसलिए अग्नि का उष्णता के साथ जिसप्रकार

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