Book Title: Samaysara Anushilan Part 01
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 464
________________ 458 समयसार अनुशीलन 'जो यह वर्णादिमान जीव है' - ऐसा कहकर व्यवहार की स्थापना की है, व्यवहार का ज्ञान कराया है; और वह वर्णादिमय नहीं, ज्ञानमय है' - ऐसा कहकर व्यवहार का निषेध किया, निश्चय की स्थापना की है। ___ वर्ण के साथ लगे आदि शब्द से २९ भावों में वर्ण को छोड़कर शेष २८ भाव भी ले लेना चाहिए और उक्त कथन वर्ण के समान ही उन पर भी घटित करना चाहिए। प्रश्न -किसप्रकार घटित करें; कुछ घटाकर बताइये न? उत्तर -जो यह रसवाला जीव है, वह रसमय नहीं, ज्ञानमय है; जो यह रागवाला जीव है, वह रागमय नहीं, ज्ञानमय है; जो गुणस्थानवाला जीव है, वह गुणस्थानमय नहीं, ज्ञानमय है; जो जीवस्थानवाला, जीव है, वह जीवस्थानमय नहीं, ज्ञानमय है। - इसीप्रकार सभी २९ भावों पर घटित करना चाहिए। इनके प्रभेदों पर भी इसीप्रकार घटित करना चाहिए। इस ६७वीं गाथा में जीवस्थान के प्रभेदों पर इस बात को ही घटित किया गया है; क्योंकि सूक्ष्म, वादर, पर्याप्तक, अपर्याप्तक भेद जीवस्थान अर्थात् जीवसमास के ही हैं। प्रश्न -इसे चौदह जीव स्थानों पर किसप्रकार घटित करें? उत्तर -इसे १४ जीवसमासों या जीवस्थानों पर इसप्रकार घटित करना चाहिए - जो यह वादरेकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव है, वह वादरेकेन्द्रिय पर्याप्तकमय नहीं है, ज्ञानमय है; जो यह सूक्ष्मेकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव है, वह सूक्ष्मेकेन्द्रिय पर्याप्तकमय नहीं है, ज्ञानमय है; जो द्वीन्द्रियपर्याप्तक जीव है, वह द्वीन्द्रिय पर्याप्तकमय नहीं; ज्ञानमय है। इसीप्रकार १४ भंग बनाने चाहिए।

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