Book Title: Samaysara Anushilan Part 01
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 453
________________ 447 गाथा ६१ ६४ वर्णादिभाव संसारी जीवों के ही होते हैं, मुक्त जीवों के नहीं। यदि तुम ऐसा मानोगे कि ये वर्णादिभाव जीव ही हैं तो तुम्हारे मत में जीव और अजीव का कोई अन्तर ही न रहेगा। यदि तुम ऐसा मानो कि संसारी जीव के ही वर्णादिक होते हैं; इसकारण संसारी जीव तो रूपी हो ही गये। किन्तु रूपित्व लक्षण तो पुद्गलद्रव्य का है। अतः हे मूढ़मति पुद्गलद्रव्य ही जीव कहलाया। अकेले संसारावस्था में ही नहीं, अपितु निर्वाण प्राप्त होने पर भी पुद्गल ही जीवत्व को प्राप्त हुआ। उक्त युक्तियों से आचार्यदेव यह बताना चाहते हैं कि वर्णादि का जीव के साथ तादात्म्य नहीं है; इसलिए वे निश्चय से जीव नहीं हो सकते। ___ जयचन्दजी छाबड़ा ने उक्त गाथाओं के भावार्थ में गाथाओं के भाव को अत्यन्त सरल भाषा में प्रस्तुत कर दिया है । अत: सर्वप्रथम उसका अवलोकन कर लेना ही उपयुक्त है; जो इसप्रकार है - __ "द्रव्य की सर्व अवस्थाओं में द्रव्य के जो भाव व्याप्त होते हैं, उन भावों के साथ द्रव्य का तादात्म्यसम्बन्ध कहलाता है। पुद्गल की सर्व अवस्थाओं में (पुद्गल में) वर्णादि भाव व्याप्त हैं, इसलिये वर्णादिभावों के साथ पुद्गल का तादात्म्यसम्बन्ध है । संसारावस्था में जीव में वर्णादि भाव किसीप्रकार से कहे भी जा सकते हैं, किन्तु मोक्ष-अवस्था में तो जीव में वर्णादि भाव सर्वथा नहीं हैं; इसलिये जीव का वर्णादि भावों के साथ तादात्म्यसम्बन्ध नहीं है, यह बात न्यायप्राप्त है। ___ जिसप्रकार वर्णादिकभाव पुद्गलद्रव्य के साथ तादात्म्यस्वरूप हैं; उसीप्रकार जीव के साथ तादात्म्यस्वरूप हों तो जीव-पुद्गल में कोई भी भेद न रहे और ऐसा होने से जीव का ही अभाव हो जाये – यह महादोष आता है। यदि ऐसा माना जाय कि संसार-अवस्था में जीव का वर्णादि के साथ तादात्म्यसम्बन्ध है तो जीव मूर्तिक हुआ; और मूर्तिकत्व तो पुद्गलद्रव्य का लक्षण है; इसलिये पुद्गलद्रव्य ही जीवद्रव्य सिद्ध हुआ, उसके

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