Book Title: Samaysara Anushilan Part 01
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 455
________________ 449 गाथा ६१-६४ वर्ण से लेकर गुणस्थान तक के सभी भावों का जिसप्रकार पुद्गल के साथ तादात्म्य-संबंध है, उसीप्रकार जीव के साथ भी तादात्म्यपना हो तो जीव व पुद्गल में कोई भेद नहीं रहेगा और ऐसा होने पर जीव का ही अभाव ठहरेगा। जिसका अभिप्राय या श्रद्धान ऐसा है कि भले ही मोक्ष-अवस्था में रागादि का जीव के साथ तादात्म्यसंबंध न हो; परन्तु संसार अवस्था में तो जीव का रागादिभावों के साथ संबंध है। उनसे कहते हैं कि हे भाई! यदि संसारावस्था में भी ज्ञान का वर्णादि भावों के साथ संबंध हो तो संसारावस्था के काल में तेरे मत के अनुसार जीव अवश्य ही रूपित्व को प्राप्त होगा। ..... ___ यहाँ ऐसा कहते हैं कि संसारावस्था में भी रागादिभाव आत्मा के नहीं हैं। संसार-अवस्था में जीव का रंग, राग व भेदभावों के साथ तादात्म्यसंबंध नहीं है; तथापि यदि तेरा अभिप्राय ऐसा ही हो कि . ज्ञानानन्दस्वभावी जीव के संसारावस्था में रंग, राग व भेद के भावों से तादात्म्य है तो आत्मा अवश्य ही रूपीपने को प्राप्त होगा। भाई! रंग-राग-भेद से तो पुद्गल को ही तन्मयपना है। यदि संसार-अवस्था में आत्मा को इससे तन्मयपना मानेंगे तो आत्मा रूपीपुद्गल ही हो जायेगा, फिर संसार-अवस्था से पलटकर जब मोक्ष होगा तो किसका मोक्ष होगा? पुद्गल का ही मोक्ष होगा अर्थात् मोक्ष में पुद्गल ही रहेगा, जीव नहीं रहेगा। एक अवस्था में यदि रंग-रागभेद जीव से तन्मय हों तो दूसरी अवस्था में भी वे जीव से तन्मय अर्थात् एकमेक ही रहेंगे। अतः जब संसार-अवस्था में जीव पुद्गल से तन्मय है तो मोक्ष-अवस्था में भी पुद्गल से तन्मय ही रहेगा अर्थात् पुद्गल का ही मोक्ष होगा। १. प्रवचनरत्नाकर (हिन्दी) भाग-२, पृष्ठ ३३३ २. वही, पृष्ठ ३३६

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