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समयसार अनुशीलन
(५) समस्त विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप जीव का स्वभाव होने से, वह केवल एक स्पर्शवेदना परिणाम को पाकर स्पर्श को नहीं स्पर्शता; अत: अस्पर्श है।
(६) समस्त ज्ञेयों का ज्ञान होने पर भी सकल ज्ञेय-ज्ञायक के तादात्म्य का निषेध होने से स्पर्श के ज्ञानरूप में परिणमित होने पर भी स्वयं स्पर्शरूप परिणमित नहीं होता; अत: अस्पर्श है।
- इसप्रकार छह प्रकार से स्पर्श के निषेध से आत्मा अस्पर्श है।
(१) पुद्गलद्रव्य से भिन्न होने के कारण जीव में शब्दपर्याय नहीं है; अत: जीव अशब्द है।
(२) पुद्गलद्रव्य की पर्यायों से भी भिन्न होने के कारण जीव स्वयं भी शब्दपर्याय नहीं है; अत: जीव अशब्द है।
(३) परमार्थ से जीव पुद्गलद्रव्य का स्वामी भी नहीं है, इसलिए वह द्रव्येन्द्रिय के माध्यम से शब्द नहीं सुनता; अत: अशब्द है।
(४) स्वभावदृष्टि से जीव क्षायोपशमिकभावरूप भी नहीं है, इसलिए वह भावेन्द्रिय के माध्यम से भी शब्द नहीं सुनता; अत: अशब्द है।
(५) समस्त विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप जीव का स्वभाव होने से, वह केवल एक शब्द संवेदना परिणाम को पाकर शब्द नहीं सुनता; अत: अशब्द है।
(६) समस्त ज्ञेयों का ज्ञान होने पर भी सकल ज्ञेय-ज्ञायक के तादात्म्य का निषेध होने से शब्द के ज्ञानरूप में परिणमित होने पर भी स्वयं शब्दरूप परिणमित नहीं होता; अतः अशब्द है।
- इसप्रकार छह प्रकार से शब्दपर्याय के निषेध से आत्मा अशब्द
(१) पुद्गलद्रव्य से रचित शरीर के संस्थान (आकार) से जीव को संस्थानवाला नहीं कहा जा सकता; अत: जीव अनिर्दिष्टसंस्थान है।