________________ समयसार अनुशीलन 412 जिसप्रकार हाथ की पाँच अंगुलियों में चार के नाम तो अपने आकार-प्रकार, स्थिरता और कार्य के कारण सुनिश्चित हैं, पर एक अंगुली में कोई विशेष विशेषता न होने से उसका सार्थक नाम रखना संभव नहीं हुआ तो उसे अनामिका नाम से ही पुकारने लगे। अनामिका माने बिना नाम की। विना नाम की - यह भी एक नाम हो गया। ___ अंगूठे को बलिष्ठ होने से अंगुष्ठ कहते हैं, उसके पास की अंगुली को धमकी देने के काम में आने से तर्जनी कहते हैं, बीच की अंगुली को बीच में होने से मध्यमा कहते हैं और अन्तिम अंगुली सबसे छोटी होने से कनिष्ठा कही जाती है; पर कनिष्ठा के पास की अंगुली को क्या कहें? कुछ समझ में नहीं आया तो उसे अनामिका ही कहने लगे। इसीप्रकार जिसके मौलिक आकार के बारे में कुछ कहना संभव न हो, उसे अनिर्दिष्टसंस्थान कहते हैं / आत्मा के पारमार्थिक आकार के बारे में कुछ कहना संभव नहीं है / अतः उसे यहाँ अनिर्दिष्टसंस्थान कहा गया है। अनिर्दिष्टसंस्थान के जो चार अर्थ आचार्य अमृतचन्द्र ने किए हैं, उनसे भी उक्त तथ्य की पुष्टि होती है। पहले ही अर्थ में वे साफसाफ लिखते हैं कि पुद्गलद्रव्य से रचित शरीर के संस्थान के कारण जीव को संस्थानवाला नहीं कहा जा सकता; इसकारण जीव अनिर्दिष्टसंस्थान है। अनन्त शरीरों के अनन्त संस्थान (आकार) होते हैं। एक-एक शरीर भी अनेक आकारों में परिवर्तित होता रहता है। अत: उनके आधार पर आत्मा के सुनिश्चित आकार को कहना संभव नहीं है। देह के अनियत संस्थानों के आधार पर असंख्यातप्रदेशी नियत संस्थानवाले आत्मा के संस्थान (आकार) को कहना संभव नहीं है। अतः आत्मा को अनिर्दिष्टसंस्थान कहा गया है। - यह अनिर्दिष्टसंस्थान का आचार्य अमृतचन्द्रकृत दूसरा अर्थ है।