Book Title: Samaysara Anushilan Part 01
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 416
________________ समयसार अनुशीलन 410 उत्तर - अरे भाई! इतना उत्तेजित क्यों होते हो? यह अर्थ भी करेंगे। जरा धैर्य रखो, आगामी गाथाओं में यही अर्थ किया गया है। आगामी पाँच गाथाओं में इसी बात को विस्तार से कहा गया है; वहाँ भी आत्मा को रस, रूप, गंध और स्पर्श से रहित बताया है। आपने प्रश्न में जैसा सरल-सहज अर्थ बताया, वैसा ही अर्थ वहाँ दिया गया है। उसे भी यहाँ ही दे देते तो फिर वहाँ क्या करते? यहाँ जो गंभीर अर्थ किये हैं, वे भेदज्ञान की विशेष सिद्धि के लिए ही किए गए हैं; क्योंकि यह अज्ञानी जीव ऐसा जानकर भी कि आत्मा में रसादि नहीं हैं; उनसे किसी न किसी प्रकार अपनत्व, एकत्व, ममत्व स्थापित कर लेता है और कुछ नहीं तो सामान्य ज्ञेय-ज्ञायक संबंध के आधार पर ही उन्हें अपना जानने-मानने लगता है। अत: यहाँ उन सभी संभावनाओं को सयुक्ति नकारा गया है। अतः इन गंभीर अर्थों को पढ़कर अरुचि से नाक-भों नहीं सिकोड़ना चाहिए, अपितु उन्हें गहराई से समझकर अपने आत्मा का सही स्वरूप जानकर, उसमें ही एकत्व-ममत्व स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। अब अशब्द के छह अर्थों पर विचार करते हैं / अशब्द के छह अर्थ भी रूपादि के छह अर्थों के समान ही करना है; परन्तु इतना अन्तर तो अवश्य होगा कि जहाँ रूपादि गुण होने से उनके साथ गुण शब्द का प्रयोग किया गया था, शब्द के पर्याय होने से यहाँ पर्याय शब्द का उपयोग होगा। __ अशब्द विशेषण के प्रथम अर्थ में यह कहा गया है कि पुद्गलद्रव्य से भिन्न होने के कारण आत्मा में पुद्गल की भाषावर्गणा की पर्यायरूप शब्द भी नहीं है; अतः आत्मा अशब्द है। दूसरे अर्थ में यह कहा गया है कि पुद्गलद्रव्य की पर्यायों से भिन्न होने के कारण आत्मा स्वयं भी शब्दपर्याय नहीं है; अत: अशब्द है।

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