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कलश ३३
___ त्यागी, कृतज्ञ, कुलीन. लक्ष्मीवान, लोगों के अनुराग का पात्र; रूप, यौवन और उत्साह से युक्त; तेजस्वी, चतुर और शीलवान पुरुष काव्यों और नाटकों का नायक होता है।
धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित और धीरप्रशान्त – ये नायक के प्रथम चार भेद हैं।
क्षमाशील, अतिगंभीर स्वभाववाला, अपनी प्रशंसा नहीं करनेवाला, महासत्त्व अर्थात् हर्ष-शोकादि से अपने स्वभाव को नहीं बदलनेवाला, स्थिरप्रकृति, विनय से युक्त गौरववान, दृढव्रती, अपनी बात का पक्का
और आन-वानवाला पुरुष धीरोदात्त नायक कहलाता है। जैसे कि श्रीराम, युधिष्ठिर आदि। ___ मायावी, प्रचण्ड, चपल, घमण्डी, शूर, अपनी प्रशंसा के पुल बांधनेवाला पुरुष धीरोद्धत्त नायक कहलाता है। जैसे - रावण, भीमसेन आदि।
निश्चित, अतिकोमलस्वभाववाला, सदा नृत्य-गीतादि कलाओं में लीन पुरुष धीरललित नायक कहलाता है। जैसे - रत्नावली नाटिका में वत्सराज आदि।
त्यागी, कृतज्ञ, कुलीन, सम्पन्न लोगों से सम्मान्य, तेजस्वी, चतुर और शीलवान संस्कारों से सम्पन्न द्विजादिक पुरुष धीरप्रशान्त नायक कहे जाते हैं। जैसे - भगवान महावीर, बुद्ध आदि।"
इसीप्रकार के भाव महाकवि धनन्जय विरचित दशरूपक के द्वितीय प्रकाश में भी प्राप्त होते हैं ।
नायक के उक्त प्रकारों में धीरोदात्त नायक ही सर्वश्रेष्ठ नायक होता है । यद्यपि धीरप्रशान्त भी अच्छा ही होता है; पर उसकी प्रशान्तता उसे संघर्ष में प्रवृत्त नहीं होने देती। जब किसी संघर्ष में विजय प्राप्त करना हो तो वहाँ धीरोदात्तता ही बलवती सिद्ध होती है।