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समयसार अनुशीलन
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धीर विशेषण तो चारों प्रकार के नायकों में सभी में पाया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि धीरता के बिना तो नायकपना संभव ही नहीं है। धैर्य तो अत्यन्त आवश्यक है; पर जिसमें धैर्य के साथ-साथ उदात्तता भी हो, उदारता भी हो; तो फिर उसका कहना ही क्या ?
यहाँ जिस ज्ञान का स्मरण किया गया है, वह ज्ञान इसीप्रकार का धीरोदात्त नायक है, वह धैर्य का धनी तो है ही और उदार भी है ; क्योंकि अनन्त ज्ञेयों को जानने की उदारता और धैर्य उसमें है; पर वह उनमें अपनापन स्थापित नहीं करता, उनका स्वामी नहीं बनता।
जिसप्रकार कोई राजा शत्रु के आक्रमण को धैर्य से झेले और उसे पराजित करके भी उसका राज्य उदारतापूर्वक उसे ही लौटा दे, उसे मित्र बना ले तो वह धीरता और उदारता दोनों का ही परिचय देता है। ऐसा नायक धीरोदात्त कहलाता है । ज्ञान अनंत ज्ञेयों को बड़े धैर्य से देखता-जानता है; पर उनमें जमता-रमता नहीं, उनका स्वामी नहीं बनता, उन्हें अपनी सम्पत्ति नहीं मानता। यह उसकी उदारता है।
अनन्त ज्ञेयों को जानने पर भी उसे कोई आकुलता नहीं होती। अतः वह अनाकुल भी है । वह तो सदा ही अपने आत्मारूपी बाग में ही रमण करता रहता है; क्योंकि उसने अपनी वीरता से धीरता से सभी शत्रुओं को पराजित कर उन्हें भी अनुकूल बना लिया है। अतः अब उसे आकुलता का कोई कारण शेष नहीं रहा है। __ जो आक्रमण करने में सक्षम होता है, उसे वीर कहते हैं और जो आक्रमण झेलने में समर्थ होता है, उसे धीर कहते हैं । आक्रमण करने से अधिक आवश्यकता आक्रमण झेलने की है; क्योंकि यदि आक्रमण को झेलने की क्षमता न हो तो आक्रमण करने का अवसर ही प्राप्त न हो सकेगा। अतः प्रत्येक नायक वीर तो होता ही है, उसका धीर होना भी अत्यन्त आवश्यक है । जिसमें धीरता नहीं होगी, वह अनाकुल नहीं रह सकता।