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समयसार अनुशीलन अनाकुल है। यही कारण है कि इस मंगलाचरण के छन्द में उसे ही स्मरण किया गया है।
प्रश्न -आपने कहा कि ज्ञान धीरोदात्त नायक है। यह धीरोदात्त नायक क्या होता है, कैसा होता है? नायक कितने प्रकार के होते हैं और कौन-कौन से?
उत्तर - भाई, यह सब काव्यशास्त्र का विषय है। इन बातों को विस्तार से जानने के लिए काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए।
प्रश्न -यह तो ठीक, पर प्रत्येक आत्मार्थी तो काव्यशास्त्र का अध्ययन कर नहीं सकता है। अत: संक्षेप में यहाँ भी समझाइये न, जिससे हम समयसार की नाटकीयता को भी थोड़ी-बहुत समझ सकें।
उत्तर – काव्यशास्त्र के प्रतिष्ठित आचार्य विश्वनाथ के प्रसिद्ध ग्रन्थराज साहित्यदर्पण में नायक के स्वरूप व भेदों को इसप्रकार स्पष्ट किया गया है
"त्यागी कृती कुलीनः सुश्रीको रूपयौवनोत्साही। दक्षोऽनुरक्तलोकस्तेजो वैदग्ध्यशीलवान नेता॥ धीरोदात्तो धीरोद्धतस्तथा धीरललितश्च । धीरप्रशान्त इत्ययमुक्तः प्रथमश्चतुर्भेदः।। अविकत्थनः क्षमावानतिगम्भीरो महासत्त्वः। स्थेयानिगूढमानो धीरोदात्तो दृढ़व्रतः कथितः॥ मायापरः प्रचण्डश्चपलोऽहंकारदर्पभूयिष्ठः । आत्मश्लाघानिरतो धीरेधीरोद्धतः कथितः।। निश्चिन्तो मृदुरनिशं कलापरो धीरललितः स्यात् ।
सामान्यगुणैर्भूयान्द्विजादिको धीरशान्तः स्यात्॥ १. महाकवि विश्वनाथ : साहित्यदर्पण, तृतीय परिच्छेद, श्लोक - ३० से ३४