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उत्तर - शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ, भावार्थ - ये अर्थ करने की पाँच विधियाँ हैं । इनमें शब्दों का व्युत्पत्तिपरक अर्थ करना शब्दार्थ है, यह किस नय का कथन है यह स्पष्ट करना नयार्थ है, यह कथन किस मत को लक्ष्य में रखकर किया गया है यह मतार्थ है, यह कथन आगमानुकूल है, आगम के इस कथन से सिद्ध है ऐसा प्रतिपादन करना आगमार्थ है और कथन का तात्पर्य स्पष्ट करना भावार्थ है ।
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गाथा ३९-४३
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परमात्मप्रकाश की बृह्मदेवकृत संस्कृतवृत्ति में मंगलाचरण की पहली गाथा का अर्थ पाँचों विधियों से करने के उपरान्त अन्त में जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है, उससे इनका आशय स्पष्ट हो जाता है । वह निष्कर्ष मूलतः इसप्रकार है
" एवं पदखण्डनारूपेण शब्दार्थः नयविभागकथनरूपेण नयार्थी भणितः बौद्धादिमतस्वरूपकथनप्रस्तावे मतार्थोऽपि निरूपितः, एवं गुणविशिष्टाः सिद्धा मुक्ताः सन्तीत्यागमार्थः प्रसिद्धः अत्र नित्यनिरंजन ज्ञानमयरूपं परमात्मद्रव्यगुणादेयमिति भावार्थ: । अनेन प्रकारेण शब्दनयमतागमभावार्थो व्याख्यानकाले यथासंभवं सर्वत्र ज्ञातव्यः इति ।
इसप्रकार पदखण्डनारूप शब्दार्थ कहा और नयविभागरूप नयार्थ भी कहा तथा बौद्ध, नैयायिक, सांख्यादि मत के कथन करने से मतार्थ कहा; इसप्रकार अनन्तगुणात्मक सिद्ध परमेष्ठी संसार से मुक्त हुए हैं यह सिद्धान्त का अर्थ प्रसिद्ध ही है, यही आगमार्थ है; और नित्य, निरंजन, ज्ञानमयी परमात्मद्रव्य उपादेय है यह भावार्थ है ।
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व्याख्यान के अवसर पर यथासंभव सर्वत्र ही इसीप्रकार शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ और भावार्थ जान लेना चाहिए।"
इसीप्रकार का भाव पंचास्तिकाय के मंगलाचरण की पहली गाथा की तात्पर्यवृत्ति टीका में आचार्य जयसेन ने भी व्यक्त किया है।