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समयसार अनुशीलन
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इसप्रकार आत्मा का स्वरूप प्रतिपादन करनेवाली यह गाथा जिनागम की सर्वाधिक लोकप्रिय गाथा है।
इस गाथा में अरस, अरूप आदि आठ विशेषणों के माध्यम से दृष्टि के विषयभूत भगवान आत्मा का स्वरूप समझाया गया है।
यह तो सर्वविदित ही है कि आचार्य अमृतचन्द्र ने समयसार पर आत्मख्याति, प्रवचनसार पर तत्त्वप्रदीपिका एवं पंचास्तिकाय पर समयव्याख्या नामक टीकाएँ लिखी हैं। उन्होंने अपनी तीनों टीकाओं में इस गाथा का अलग-अलग प्रकार से अर्थ किया है, जो अपने-आप में अद्भुत है; मूलत: पठनीय है, गहराई से अध्ययन करने योग्य है, मननीय है।
आत्मख्याति में आचार्य अमृतचन्द्र ने भगवान आत्मा के इन विशेषणों के एक-एक के अनेक-अनेक अर्थ किए हैं । अरस, अरूप, अगंध, अशब्द और अव्यक्त विशेषण के छह-छह अर्थ किये हैं तथा अनिर्दिष्टसंस्थान के चार अर्थ किए हैं।
पुद्गल के चार गुणों में रस, रूप और गंध - ये तीन गुणों के अभावरूप अरस, अरूप, अगंध विशेषण तो मूल गाथा में है; पर पुद्गल के स्पर्श गुण का निषेध करनेवाला अस्पर्श विशेषण नहीं है। अत: प्रवचनसार की तत्त्वप्रदीपिका टीका में तो आचार्य अमृतचन्द्र ने अव्यक्त विशेषण का ही अर्थ अस्पर्श किया है और वे आचार्य अमृतचन्द्र ही यहाँ अव्यक्त के उससे भिन्न चार अर्थ करते हैं और अस्पर्श विशेषण को गाथा में छन्दानुरोधवश अनुक्त मानकर वैसे ही ऊपर से ले लेते हैं और अरस, अरूप, अगंध के समान उसके भी छह अर्थ करते हैं।
इसप्रकार इस आत्मख्याति में भगवान आत्मा के आठ विशेषणों के स्थान पर नौ विशेषण हो गये हैं और अरस के छह, अरूप के छह, अगंध के छह, अस्पर्श के छह, अशब्द के छह, अव्यक्त के छह,