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गाथा ३९-४३
उनमें से वेदान्ती, मीमांसक, सांख्य, योग, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, चार्वाक आदि मतों के आशय लेकर आठ प्रकार तो प्रगट कहे हैं और अन्य भी अपनी-अपनी बुद्धि से अनेक कल्पनायें करके अनेक प्रकार से कहते हैं तो उन्हें कहां तक कहा जाये?" ___ भारतवर्ष में मुख्यरूप से नौ दर्शन प्रसिद्ध हैं, उनमें आठ दर्शन तो वे ही हैं, जिनकी चर्चा जयचंदजी ने भावार्थ में की है और नौवाँ दर्शन जैनदर्शन है । उक्त आठ दर्शनों में जो जीव का स्वरूप बताया गया है, वह ठीक नहीं है - यही बात स्पष्ट करने का प्रयास उक्त गाथाओं में किया गया है। __यदि ऐसा है तो फिर जीव का वास्तविक स्वरूप क्या है अथवा जैनदर्शन में जीव का वास्तविक स्वरूप कैसा बताया गया है? - यह बात आगामी गाथाओं में यथावसर स्पष्ट करेंगे।
जिन आठ प्रकार की मान्यताओं का उल्लेख उक्त गाथाओं में किया गया है.; उनमें से कौन-सी मान्यता किस मत की है अथवा किस मत के अनुकूल है, नजदीक है; इस बात को सहजानन्दजी (मनोहरलालजी) वर्णी अपनी सप्तदशांगी टीका की इसी गाथा के तथ्यप्रकाश शीर्षक में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - "(१) वेदान्तादिसम्मत जैसा नैसर्गिक राग-द्वेष कलुषित
अध्यवसान जीव नहीं है। (२) मीमांसकादिसम्मत जैसा संसरणक्रियाविलसित कर्म जीव
नहीं है। (३) सांख्यादिसम्मत जैसा अध्यवसानसंतान जीव नहीं है। (४) वैशेषिकादिसम्मत जैसा नवीन-नवीन दशा में प्रवर्तमान
शरीर ही जीव हो - ऐसा नहीं है। (५) बौद्धादिसम्मत जैसा क्षणिक शुभ-अशुभभाव ही जीव हो
- ऐसा नहीं है।