________________
281
गाथा ३१
-
तो क्या हम इसके आधार पर यह मान सकते हैं कि आदिनाथ भगवान पुद्गल परमाणुओं से बने थे ? अरे भाई, पुद्गल परमाणुओं से तो उनकी देह बनी थी, वे तो ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान आत्मा ही हैं । यह बात बिना समझाये ही बच्चे-बच्चे की समझ में आ जाती है यही कारण है कि जब इसका हिन्दी पद्यानुवाद किया गया तो अनुवादक ने स्पष्ट लिख दिया कि
1
-
" जिन जितने जैसे अणुओं से निर्मापित प्रभु तेरी देह । थे उतने वैसे अणु जग में शान्त रागमय निस्सन्देह ॥ है त्रिभुवन के शिरोभाग के अद्वितीय आभूषणरूप । इसलिए तो आप सरीखा नहीं दूसरों का है रूप ॥ संस्कृत भाषा के मूल छन्द के समान इस छन्द में यह नहीं लिखा कि भगवान परमाणुओं से बने हैं, अपितु यही लिखा है कि भगवान की देह शान्त परमाणुओं से बनी है ।
अरे भाई, जिनागम का प्रत्येक वाक्य नय की भाषा में ही निबद्ध हैं। अतः जिनागम का मर्म समझने के लिए नयविभाग जानना अत्यन्त आवश्यक हैं 1
यद्यपि उक्त छन्द का प्रयोजन आदिनाथ भगवान के शरीर की सुन्दरता का निरूपण ही है, उनके आत्मगुणों का निरूपण करना नहीं; तथापि देह और आत्मा के अभेद को लक्ष्य में लेकर भाषा का प्रयोग तो इसीप्रकार किया गया है कि जैसे भगवान स्वयं भी उनकी मूर्ति के समान परमाणुओं से बने हों।
इसप्रकार के प्रयोग व्यवहारनय में होते हैं । अत: हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए। इसप्रकार की जितनी भी स्तुतियाँ उपलब्ध हों, उन्हें व्यवहारनयोपजनित मानकर निशंक रहना चाहिए ।