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गाथा ३२-३३
प्रश्न - टीका में यह कहा गया था कि इसप्रकार १६ - १६ सूत्र बनाकर व्याख्या करना चाहिये तथा और भी विचार लेना चाहिये । इस और भी विचार लेने से क्या आशय है ? क्या १६ - १६ गाथाओं से अधिक गाथायें बनाई जा सकती हैं ? यदि हाँ तो किसप्रकार ?
उत्तर - हास्यादि नौ नोकषायों के आधार पर भी नौ-नौ गाथायें बनाई जा सकती हैं, वे इसप्रकार होंगी
( हरिगीत )
हास्य को जो जीत जाने ज्ञानमय निज-आतमा । जितहास्यजिन उनको कहें परमार्थ ज्ञायक - आतमा ॥ रती को जो जीत जाने ज्ञानमय निज आतमा । जितरतीजिन उनको कहें परमार्थ ज्ञायक - आतमा ॥ अरति को जो जीत जाने ज्ञानमय निज - आतमा | जित - अरतिजिन उनको कहें परमार्थ ज्ञायक - आतमा ॥ उक्त गाथायें ३२वीं गाथा का रूपान्तरण हैं । ३३वीं गाथा का रूपान्तरण इसप्रकार होगा
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( हरिगीत )
सब हास्य क्षय हो जाय जब जितराग सम्यक् श्रमण का । तब क्षीणहास्यी जिन कहें परमार्थ ज्ञायक - आतमा ॥ सब रती क्षय हो जाय जब जितरती सम्यक् श्रमण की । तब क्षीणरती जिन कहें परमार्थ ज्ञायक - आतमा ॥ सब अरति क्षय हो जाय जब जित- अरति सम्यक् श्रमण की । तब क्षीण - अरति जिन कहें परमार्थ ज्ञायक आतमा ॥
जिसप्रकार यहाँ हास्यादि कषायों के आधार पर ये तीन-तीन गाथायें बनाई हैं, उसीप्रकार शेष छह-छह भी बना लेना चाहिये । इनके अतिरिक्त और भी गाथायें बनाई जा सकती हैं।
इसप्रकार २६वीं गाथा में आरंभ हुआ स्तुति का प्रकरण निश्चयव्यवहार स्तुति की विस्तृत व्याख्या के उपरान्त समाप्त होता है । अत: