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समयसार अनुशीलन
वह दर्पण की स्वच्छता की ही दशा है, वह कोई परवस्तु नहीं है । तथा सामने परवस्तु है, उसके कारण दर्पण की स्वच्छता की परिणति हुई है ऐसा भी नहीं है ।
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उसीतरह इस ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा का अपनी दशा में परवस्तु को जानने का, ग्रहण करने का, ग्रसने का, प्रवेश करने का स्वभाव है । समस्त पदार्थों को जानने का ज्ञान परिणति का स्वभाव है। चाहे सर्वज्ञ परमेश्वर हो, समवशरण हो या मन्दिर हो इन सभी को अपने चैतन्य प्रकाश की सामर्थ्य से जानने का स्वभाव है । ऐसी प्रचण्ड चिन्मात्रशक्ति से ग्रासीभूत होने से मानो अत्यन्त अन्तर्मग्न हो रहे हैं • इसप्रकार समस्त पदार्थ आत्मा में प्रकाशमान हैं ।
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धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय पदार्थ हैं । ये जगत की वस्तुएं हैं । इन्हें केवली भगवान ने प्रत्यक्ष देखा जाना है। सर्वज्ञ परमेश्वर के सिवाय इन्हें अन्य किसी ने प्रत्यक्ष नहीं देखा । १
समयसार गाथा ३२० में तो यहाँ तक आता है कि भगवान आत्मा ज्ञानस्वरूप है, वह बंध को भी जानता है, मोक्ष को भी जानता है, उदय को भी जानता है, निर्जरा को भी जानता है; वह तो मात्र जानता है । लो अब क्या बाकी रहा? स्वयं ज्ञानस्वभावी प्रभु है न? उसके लिए उदय भी परज्ञेय, बन्ध भी परज्ञेय, निर्जरा भी परज्ञेय और कर्म का छूटना भी परज्ञेय है; इसलिए आत्मा उदय, बन्ध, निर्जरा व मोक्ष को मात्र जानता है, करता नहीं । २
१. प्रवचनरत्नाकर (हिन्दी) भाग-२, पृष्ठ ११८-११९
२. प्रवचनरत्नाकर (हिन्दी) भाग- २, पृष्ठ १२१
अनादि से आत्मा का स्वभाव स्वपरप्रकाशक की सामर्थ्यवाला है | इसकारण जो ज्ञान पर को प्रकाशित करता है, वह पर के अस्तित्व के