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प्रश्न ऐसे कौन-कौन से परज्ञेय हैं, जिन्हें ज्ञायक मान लिया जाता है ?
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उत्तर - इन्द्रियाँ । इन्द्रियाँ ही ऐसे ज्ञेय हैं, जिन्हें जायक मान लिया जाता है। इसलिए यहाँ कहा गया है कि जो इन्द्रियों को जीतकर अपने भगवान आत्मा को अन्य द्रव्यरूप ज्ञेयों से भिन्न जानते हैं, वे जितेन्द्रियजिन हैं ।
गाथा ३१
आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में इस गाथा का अर्थ करते हुए 'इन्द्रिय' शब्द का अर्थ द्रव्य इन्द्रियाँ, भाव-इन्द्रियाँ और इन्द्रियों के विषयभूत पदार्थ करते हैं तथा विस्तार से स्पष्ट करते हैं कि इन तीन प्रकार की इन्द्रियों को जीतने का क्या अर्थ है और इन्हें जीतने की विधि क्या है ?
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इस गाथा पर आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा लिखी गई आत्मख्याति टीका का भाव मूलतः इसप्रकार है
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' अनादि अमर्याद बंध पर्याय के वश, जिनमें समस्त स्व पर का विभाग अस्त हो गया है अर्थात् जो आत्मा के साथ ऐसी एकमेक हो रही है कि भेद दिखाई नहीं देता; ऐसी शरीर परिणाम को प्राप्त द्रव्येन्द्रियों को निर्मल भेदाभ्यास की प्रवीणता से प्राप्त अंतरंग में प्रगट अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव के अवलम्बन के बल से अपने से सर्वथा अलग करना अर्थात् सर्वथा भिन्न जानना यह तो द्रव्येन्द्रियों का जीतना हुआ ।
भिन्न-भिन्न अपने विषयों में व्यापार से जो विषयों को खण्डखण्ड ग्रहण करती हैं, ज्ञान को खण्ड खण्ड रूप बतलाती हैं; ऐसी भावेन्द्रियों को, प्रतीति में आती हुई अखण्ड एक चैतन्यशक्ति के द्वारा अपने से सर्वथा भिन्न करना अर्थात् भिन्न जानना यह भावेन्द्रियों
का जीतना हुआ।
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