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समयसार गाथा २० से २२
१९वीं गाथा में यह कहा था कि जबतक यह आत्मा कर्म और नोकर्म में एकत्व - ममत्व रखेगा, तबतक अप्रतिबुद्ध रहेगा, अज्ञानी रहेगा; अतः अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि हम कैसे पहिचाने कि यह व्यक्ति अप्रतिबुद्ध है, अज्ञानी है ? तात्पर्य यह है कि अज्ञानी की पहिचान के चिन्ह क्या हैं?
इसी प्रश्न के उत्तरस्वरूप आगामी २० से २२ तक की गाथायें लिखी गई हैं; जो इसप्रकार हैं
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अहमेदं एदमहं अहमेदस्सम्हि अत्थि मम एदं । अण्णं जं परदव्वं सच्चित्ताचित्तमिस्सं वा ॥ २० ॥ आसि मम पुव्वमेदं एदस्स अहं पि आसि पुव्वं हि । होहिदि पुणो ममेदं एदस्स अहं पि होस्सामि ॥ २१ ॥ एयं तु असब्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढो । भूदत्थं जाणंतो ण करेदि दु तं असंमूढो ॥ २२ ॥ ( हरिगीत )
सचित्त और अचित्त एवं मिश्र सब परद्रव्य ये ।
हैं मेरे ये मैं इनका हूँ ये मैं हूँ या मैं हूँ वे ही ॥ २० ॥ हम थे सभी के या हमारे थे सभी गतकाल में । हम होंगे उनके हमारे वे अनागत काल में ॥ २१ ॥ ऐसी असंभव कल्पनाएँ मूढ़जन नित ही करें । भूतार्थ जाननहार जन ऐसे विकल्प नहीं करें ॥ २२ ॥
जो पुरुष अपने से भिन्न परद्रव्यों में सचित स्त्री- पुत्रादिक में, अचित्त धन-धान्यादिक में, मिश्र ग्राम-नरगादिक में - ऐसा विकल्प करता है, मानता है कि मैं ये हूँ, ये सब द्रव्य मैं हूँ; मैं इनका हूँ, ये