________________
242
समयसार अनुशीलन
यदि आत्मानुभूति प्राप्त करना है तो स्व और पर के बीच भेदविज्ञान करने का प्रयत्न करना चाहिए। यही कारण है कि यहाँ आत्मा और कर्म-नोकर्म के बीच भेदविज्ञान कराया गया है। आत्मानुभूति को भेदविज्ञानमूला कहने का मूल कारण यह है कि अन्य करोड़ों उपाय करो, तो भी भेदविज्ञान के बिना आत्मानुभूति की प्राप्ति नहीं होगी। पूजा-पाठ, जप-तप, तीर्थयात्रा, व्रत-शील, संयम आदि से आत्मानुभूति प्राप्त होने वाली नहीं है। आत्मानुभूति का तो एक ही मार्ग है और वह है भेदविज्ञान । इसलिए इस कलश में प्रेरणा दी जा रही है कि कथमपि स्वतो वा अन्यतो वा कैसे भी करके स्वतः अथवा अन्य से जैसे भी हो, मरपच के भी एक आत्मानुभूति प्राप्त करो; क्योंकि सुखी होने का एकमात्र यही उपाय है।
यह आत्मानुभूति दो प्रकार से होती है। - यह बताना मूल प्रयोजन नहीं है; मूलप्रयोजन तो यह है कि इस पर बहस मत करो कि वह स्वतः प्राप्त होगी या पर से, जैसे भी हो, उसे प्राप्त करने का उग्र पुरुषार्थ करो। साधन की दृष्टि से अनुभूति को भेदविज्ञानमूला कहा है। साधन तो एकमात्र भेदविज्ञान ही है, कोई अन्य नहीं। अन्यतो वा' कहकर तो मात्र निमित्त का ज्ञान कराया है। __प्राप्त करने योग्य तो एकमात्र आत्मानुभूति ही है और उसका उपाय एकमात्र भेदविज्ञान है । यही कारण है कि आगे संवर अधिकार के एक कलश में तो यहाँ तक कहेंगे कि -
"भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धाः ये किल केचन। __ अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन ॥१३१ ।।
जितने भी जीव आज तक सिद्ध हुए हैं, वे सब भेदविज्ञान से ही हुए हैं और जितने भी संसार में बंधे हैं, वे सब भेदविज्ञान के अभाव से ही बंधे हैं।"