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समयसार अनुशीलन
178 एक बात यह भी तो है कि चरमदेह की अन्तिम स्थिति पद्मासन और खड्गासन-दोनों रूपों में से किसी भी रूप में हो सकती है। ऐसी स्थिति में हम आत्मा के किस आकार का ध्यान करेंगे - पद्मासन का या खड्गासन का? दोनों का ध्यान तो एकसाथ सम्भव है नहीं। हमें अभी यह भी तो पता नहीं है कि जब हमारा मोक्ष होगा, तब हमारा आकार पद्मासन होगा. या खड्गासन ? ऐसी स्थिति में हम किस आसन के आकार का ध्यान करेंगे? ___यदि कोई कहे कि हम उन सिद्धों के आकार का ध्यान करेंगे, जो अब तक सिद्ध हो चुके हैं। यदि ऐसा किया गया तो फिर वह ध्यान किसी अन्य का होगा, स्वयं का नहीं। अन्य के ध्यान से कर्म नहीं कटते, धर्म भी नहीं होता; शुभभाव हो सकता है, पुण्य भी बन्ध सकता है; पर कर्मों का नाश होकर परमानंद प्राप्त नहीं होता।
ऐसी स्थिति में समस्या यह है कि आखिर हम ध्यान में भगवान आत्मा को किस आकार में देखें?
अरे भाई ! ध्यान का ध्येय, श्रद्धान का श्रद्धेय, शुद्धनय का ज्ञेय, दष्टि का विषय आत्मा साकार नहीं, अनाकार है। यह अनाकार आत्मा ही निश्चयनय से असंख्यप्रदेशी कहा गया है, उसे किसी आकार का नहीं बताया। जब भी आत्मा के आकार की चर्चा होती है तो कहा जाता है कि आत्मा व्यवहार से देह प्रमाण और निश्चय से असंख्यातप्रदेशी होता है। अतः दृष्टि के विषय में आत्मा का कोई आकार नहीं आता। अनुभव के काल में आत्मा का कोई आकार नहीं दिखता, आनन्द का अनुभव होता है । रहस्यपूर्ण चिठ्ठी में पण्डित टोडरमलजी लिखते हैं कि आत्मानुभूति में प्रदेशों का प्रत्यक्ष नहीं होता, अनुभव प्रत्यक्ष होता है। __ जो लोग ऐसा कहते हैं कि हमें आत्मा का साक्षात्कार हुआ और वह अमुक आकार में दिखाई दिया; उन्हें उक्त मंथन पर गंभीरता से