________________
197
गाथा १५
विभाजित कर दिया जाता है । शुद्धनमक अर्थात् किसी पदार्थ में मिश्रित न होनेवाले नमक को सामान्यनमक कहते हैं और शाकादि खाद्यपदार्थ में मिश्रित नमक को विशेषनमक कहते हैं। ___ शाकादि में मिश्रित होने पर भी नमक तो नमक ही रहता है, वह अपने खारेपन को छोड़ नहीं देता, वह तो जहाँ भी रहता है, खारा ही रहता है। तात्पर्य यह है कि वह वास्तव में तो खारेपन में ही रहता है, अन्य कहीं जाता ही नहीं।
इसीप्रकार ज्ञान तो ज्ञान ही है और वह एक प्रकार का ही होता है; तथापि उसे सामान्यज्ञान और विशेषज्ञान के रूप में दो भागों में विभाजित कर दिया जाता है। शुद्धज्ञान को सामान्यज्ञान कहते हैं और ज्ञेयाकारज्ञान को विशेषज्ञान कहते हैं। ज्ञेयों को जाननेवाले ज्ञान को ज्ञेयाकार ज्ञान कहते हैं; क्योंकि ज्ञानपर्याय में उन ज्ञेयों के आंकार प्रतिबिम्बित होते हैं।
यद्यपि ज्ञान तो सदा ज्ञानाकार ही रहता है। ज्ञेयों को जानने के काल में भी वह अपने ज्ञानाकार को नहीं छोड़ता; तथापि ज्ञेयों के प्रतिबिम्बित होने से उसे ज्ञेयाकार भी कहा जाता है। ज्ञेयों के प्रतिबिम्बित होने से ज्ञेयों के आकार के जो आकार ज्ञान में बनते हैं, वे आकार स्वयं ज्ञान के ही हैं, ज्ञेयों के नहीं, फिर भी उन्हें कहा तो ज्ञेयाकार ही जाता है।
अकेला नमक कोई नहीं खाता, सभी लोग किसी न किसी खाद्यपदार्थ में मिलाकर ही नमक खाते हैं । अतः स्वाद के लोलुपी लोगों को नमक के असली स्वाद का अनुभव नहीं होता। पूर्वपुरुषों से सुनकर या पुस्तकों में पढ़कर भले ही वे यह कहते हों कि नमक खारा होता है, फिर भी उन्हें नमक के खारेपन का अनुभव नहीं होता, बात मात्र बातों तक ही सीमित रहती है।