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समयसार अनुशीलन
जो अभी भी सम्यग्दृष्टि ज्ञानी धर्मात्मा हैं; क्या उन्हें परज्ञेयों को जानते समय भी सामान्यज्ञान का आविर्भाव होता है ?
उत्तर – हाँ, हो सकता है; पर इसकी विवक्षा को अच्छी तरह समझना होगा । जिस व्यक्ति ने बिना किसी शाकादि पदार्थ में मिलाये नमक की डली का स्वाद चखा है, उसे नमक के स्वाद का ज्ञान डली खाते समय ही नहीं रहता; अपितु अच्छी तरह कुल्ला कर लेने के बाद भी रहता है । अन्तर मात्र इतना ही है कि खाते समय वह स्वाद प्रत्यक्षज्ञान के रूप में रहता है और खाने के बाद धारणाज्ञान के रूप में, स्मृतिज्ञान के रूप में, प्रत्यभिज्ञान के रूप में रहता है I
धारणाज्ञान के रूप में तो निरन्तर ही रहता है, स्मृति - प्रत्यभिज्ञान के रूप में कभी रहता है, कभी नहीं रहता है। शाकादि खाते समय जब विशेषनमक का स्वाद प्रत्यक्ष आ रहा होता है, तब उसे सामान्यनमक की स्मृति भी हो सकती है और ऐसा प्रत्यभिज्ञान भी हो सकता है कि इस शाक में जो नमक का स्वाद आ रहा है, वह वही डली जैसा नमक है, जिसे मैंने चखा था
इसीप्रकार आत्मानुभवी ज्ञानी धर्मात्माओं को आत्मा का ज्ञान अनुभव के काल में तो अनुभवप्रत्यक्ष के रूप में रहता है और अन्यकाल में धारणाज्ञान के रूप में, स्मृतिज्ञान के रूप में, प्रत्यभिज्ञान के रूप में रहता है ।
अनुभवप्रत्यक्ष में आया भगवान आत्मा ज्ञानी धर्मात्माओं के धारणाज्ञान में तो सदा रहता ही है; किन्तु जब उसका ज्ञान अन्य ज्ञेयों को जानता है, तब भी उसे आत्मा की स्मृति हो सकती है, ऐसा प्रत्यभिज्ञान भी हो सकता है कि ज्ञेयाकार परिणत ज्ञान में जो ज्ञान का ज्ञान हो रहा है, वह वही ज्ञान है, जिसे अनुभवज्ञान में
जाना गया था।