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समयसार अनुशीलन
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार तो सम्पूर्ण समयसार का निचोड़ है, सारांश है; अतः उसे अन्त में रखना तो एकदम स्वाभाविक ही है।
प्रश्न - जीवाजीवाधिकार और कर्ता-कर्म अधिकार के प्रतिपादन में मूलभूत अन्तर क्या है?
उत्तर - जीव-अजीव के सम्बन्ध में जो भूल होती है, वह मुख्यत: चार रूपों में पाई जाती है – पर में एकत्वबुद्धि, ममत्वबुद्धि, कर्तृत्वबुद्धि एवं भोक्तृत्वबुद्धि। इन भूलों को निकालकर उक्त सन्दर्भ में सही वस्तुस्थिति से परिचित होना प्रत्येक आत्मार्थी का प्राथमिक कर्तव्य है।
इनमें से परद्रव्य में एकत्व और ममत्व का निषेध जीवाजीवाधिकार में किया गया है तथा परद्रव्य के कर्तत्व एवं भोक्तृत्व का निषेध कर्ताकर्म अधिकार में किया गया है।
इनमें से एकत्व को अपनत्व और ममत्व को स्वामित्व भी कहते हैं । इसप्रकार पर में अपनत्व और स्वामित्व संबंधी भूल को निकालना जीवाजीवाधिकार का प्रतिपाद्य है और कर्तृत्व और भोक्तृत्व संबंधी भूल को निकालना कर्ता-कर्म अधिकार का प्रतिपाद्य है। - इन दोनों अधिकारों के प्रतिपादन में यही मूलभूत अन्तर है।
प्रश्न - जब कर्ता-कर्म अधिकार में कर्ता-कर्म के साथ-साथ भोक्ता-भोग्य संबंधी भूल पर भी प्रकाश डाला गया है, तब इस अधिकार का नाम अकेले कर्ता-कर्म के नाम पर कैसे रखा जा सकता है? इसका नाम तो कर्ता-कर्म, भोक्ता-भोग्य अधिकार होना चाहिए।
उत्तर - बात तो ऐसी ही है, पर क्या इतना लम्बा नाम अच्छा लगता? उक्त अधिकार के सम्पूर्ण प्रतिपादन पर जब एक विहंगम दृष्टि डालते हैं तो एक बात स्पष्ट होती है कि इसमें सर्वत्र कर्ता-कर्म सम्बन्ध की चर्चा ही मुख्यरूप से की गई है। हाँ, यह अवश्य है कि