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अमावस्या के दिन महादण्डनायक के घर में जो कुछ घटित हआ जमे अक्षर-अक्षर बता देना होगा। बोलो, क्या-क्या हुआ वहाँ?" ___ "वे मालिक के आप्तजन हैं। उन्हीं से जान लें, यही अच्छा है। मैंने वचन दिया है कि मैं किसी से नहीं कहूँगा।"
“तुमसे कहलवाचे बिना अब छोड़ेंगे नहीं। दण्डनायक ने सब-कुछ बता दिया है परन्तु अब हमें तुम्हारी सच्चाई की परीक्षा लेनी हैं। इसलिए जो कुछ गुजरा है उसका विवरण हू-ब-हू देना होगा। झूठ बोले तो यहीं जीभ काटकर रख दूंगा, समझे?"
"दण्डनायक जी ने ही यदि झूठ कहा हो तो?" "उन पर झूठे होने का आरोप लगाते हो?" गंगराज आगबबूला हो उठे।
"ऐसा नहीं है। जब दूसरों को बुरी लग सकने की बात आती है तो कुछेक बातों को छिपाना मानव के लिए सहज है।"
"इस पर बाद में विचार किया जाएगा। अभी तो तुम्हें सच-सच बताना होगा।"
''पहले से आरम्भ करें या अमावस्या के दिन की ही बात कहूँ?"
''मुझे तुम्हारा उद्देश्य मालूम हो गया है। जो कुछ तुम कहना चाहते हो, कहो। ज़्यादा बातें बनाने की ज़रूरत नहीं।"
"जैसी आज्ञा। चोकी ने मेरे विषय में जो कहा उससे दण्डनायिका बहुत प्रभावित हुई होंगी। इसीलिए उन्हें जब डर लगा तो आकर उन्होंने मेरी मदद माँगी। कहने लगी, 'पता नहीं कौन हमारी और हमारी सन्तान की बुराई चाह रहे हैं। उनसे हमारी रक्षा होनी चाहिए।' मैंने उन्हें और उनकी सन्तान के लिए “सर्वतोभद्र यन्त्र' तैयार करके दिया। यह एक संवत्सर पीछे की बात है। उसके बाद उन्होंने मुझे बुलवाया नहीं और न ये मेरे पास ही आयीं। अभी हाल में गत कृष्णपक्ष के आरम्भ में एक दिन दण्डनायिका जी आयीं और बोलीं, 'अंजन लगाना है।' उन्होंने मुझे कभी यह नहीं बताया कि आखिर उनका बुरा चाहनेवाले कौन हैं तब मैंने उनसे कहा-'अंजन लगाने पर अनचाहा विषय भी दृष्टिगोचर हो सकता है। लेकिन जब उन्होंने हठ किया तो मैंने उनकी बात स्वीकार कर ली। मगर लगता है, यह बात पहले दण्डनायक जी को मालूम नहीं थी। उन्हें कैसे मालूम हुआ, पता नहीं। वे खुद आये, और बोले, 'यह अंजन लगाने का काम हमारे ही यहाँ हो, और इसकी किसी को खबर न हो। अगर यह पात्र इन्द्रजाल हुआ तो देश निकाले का दण्ड दिया जाएगा।' "
एक क्षण चुप रहकर उसने पुनः कहना आरम्भ किया, "सबके सो जाने पर वहाँ जाने का निश्चय किया गया। यथानुसार गत अमावस्या को मैं उनके निवास
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 55