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"ठीक है, जाओ अपना काम देखो।" एचलदेवी ने कहा। वह चला गया।
“राजनीतिक श्रृंखला में लगी कड़ियों को एक जगह से निकालकर दूसरी जगह बिटाया जा सकता है। यह महादण्डनायक से सम्बद्ध विषय है। अन्तःपुर के लोगों को इन बातों में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं, ऐसा एचलदेवी समझती थीं। फिर प्रभु ने स्वतः अपने काय के लिए जि हैं यहां बुलवाया उन्हें राजगृह की सलाह लिये बिना कहीं अन्चत्र भेजने के लिए कोई कारण होना चाहिए। पता लगाना होगा कि कारण क्या है।'' एचलदेवी ने विचार किया। वे सोचने लगी कि बेटे से विचार-विमर्श करें या महाराज से? आखिर निर्णय किया कि इस विषय पर महाराज से ही चर्चा करना ठीक है। महाराज से मिलने के लिए सूचना भिजवा दी गयी।
जिस दासी के द्वारा समाचार भेजा था उसी के साथ महाराज स्वयं ही आ पहुँचे और, "क्या कोई ज़रूरी काम था:" पूछते हुए बैठ गये। इसी बीच एचलदेवी उठकर खड़ी हो गयी थीं। उन्होंने आगे बढ़कर उनके पैर छाप, प्रणाम किया और कुछ दूर जा बैठीं। बोलीं, ''प्रभु ने हेग्गड़े मारसिंगय्या जी को यहाँ राजमहल के कार्य पर नियुक्त कर बलिपुर से बुलवाया था।' इतना निवेदन कर मौन हो गयीं। ___"हां, यह हमें मालूम है। युवराज ने हमसे विचार-विमर्श करने के याद हो यह निर्णय लिया था। युवराज को हमने सब अधिकार सौंप दिये थे। फिर भी में कभी कोई काम हमसे कहे बिना या हमारी सब लिये बिना नहीं करत थे। कभी उन्होंने उस अधिकार स्वातन्त्र्य का दुरुपयोग नहीं किया। अच्छा, इस बात को अब यहीं रहने दें। यह बताएँ कि अब हेग्गड़े का क्या हुआ?" महाराज ने पूछा।
"उन्हें एक ग्राम भेजा गया है, तीन मास पहले ही, वह सुनने में आया।"
"ऐसा क्यों? हमें कुछ मालूम ही नहीं! हमसे मिलने के लिए जब भी प्रधानजी आये, उन्होंने इस बात का जिक्र तक नहीं किया! अच्छा. हम इस सम्बन्ध में दयाफ्त करेंगे। उन्हें यहाँ बुलवाने का आदेश हम आज ही दे रहे हैं।
"न, न, महाराज को भी नहीं बताया है, तो इसमें किसी का कोई उद्देश्य ज़रूर होगा। पहले वह उद्देश्य क्या है-इसे ठीक-ठीक जानने का प्रयास करें। उसके बाद ही इस सम्बन्ध में आगे कोई विचार किया जाए-ऐसा मुझे लगता है। हमारे यहाँ के किसी अधिकारी को उनका यहाँ रहना गस न आया हो फिर भी हम बुला लें, तो उन्हें अप्रिय और अनावश्यक संघर्ष का शिकार यनना पड़ेगा। ऐसी स्थिति आखिर क्यों पैदा की जाय?"
"हमारी युवरानी जी को किसी भी अधिकारी से डरने की जरूरत नहीं, चाहे वह बड़े-से-बड़े पद पर क्यों न हों। आज युवरानी हैं कल वह राजमाता होंगी। युवरानी की बात को न माननेवाले अधिकारी को हमारे राज्य में कोई स्थान नहीं।"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 14