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कर लें।"
नागचन्द्र बल्लाल की सभी शास्त्र पढ़ा चुके थे। इससे उन्हें यह समझने में सहायता हुई कि यह अतृप्त वासना का रूप हैं। उसने माना कि इस वासना को तृप्त कर दें तो सब ठीक हो जाएगा। इसलिए पट्टमहादेवी के ही प्रकोष्ठ में वह रहने लगे। फलस्वरूप राजमहल का वातावरण कुछ नया रूप धारण करने लगा।
शान्तलदेवी, विवि और महामातृश्री एचलदेवी के प्रति विशेष आदर होने के कारण चामलदेवी और बोप्पदेवी अपने-अपने स्वार्थ को महत्त्व देकर राजमहल के वातावरण को बिगाड़ना नहीं चाहती थीं। क्योंकि हितवचन चाहे कितना ही श्रेयस्कर क्यों न हो, स्वार्थ उसके आगे झुकेगा नहीं। वर्धन्ती के वक़्त जब मरियाने आये थे तब अकेली रहकर इस तनहाई के कष्ट को भोगते रहने और इस क्रोधाद्वेग को पनपने देने से बेहतर यह होगा कि पिता के घर जाकर पिता के साथ रहें, इस विचार से वामलदेवी और वोप्पदेवी दोनों ने वहीं जाकर रहने का निश्चय किया । पद्मलदेवी ने इतना शिष्टाचार भी नहीं निभाया कि उन्हें जाने से रोकने को कहती। उसने समझा बला टल गयी। अपनी बड़ी बेटी की यह हालत देखकर मरियाने बहुत दुःखी हुए। मगर बोले कुछ नहीं ।
दिन गुजरते गये। चल्लाल ने राजकाज की सभी तरह की जिम्मेदारियाँ बिट्टिदेव पर छोड़ रखी थीं। वे पट्टमहादेवी के शयन कक्ष से ही सन्तुष्ट और सीमित रह गये । इस तरह के जीवन का फल भी मिला । पद्मलदेवी गर्भवती हुई । वह गर्व से फूल उटी । हजार-हज़ार पनौतियाँ मनायी गयीं, बेटा ही हो। उसकी इच्छा सफल हुई । "अपने विरोधियों को रौंद सकनेवाले सिंह को जन्म दिया है, इसलिए इसका नाम नरसिंह रखा जाए।" पद्मलदेवी ने कहा। बल्लाल की इच्छा थी कि अपने दादा के ही नाम पर उसका अभिधान करें। पद्मलदेवी की इच्छा के सामने उन्हें झुकना पड़ा। राजकुमार में मेरा ही खून है लेकिन यदि माँ के गुण इसमें आ गये तो विनयादित्य नाम उसके लिए अन्वर्थ न होगा। इस तरह का भी विचार उनके दिमाग़ में एक बार आया । वह पद्मलदेवी के हाथ की कठपुतली ही बन गये थे।
बिट्टिदेव कुछ समझा-बुझाकर राजकाज में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देते तो वे कहते, "पट्टमहादेवी को तृप्त रखना ही एकमात्र साधन है राजमहल में शान्ति स्थापना के लिए। हम चाहें या न चाहें, हमें ऐसा ही करना होगा। शेष सारा कार्य तुम्हारे जिम्मे हैं, छोटे अप्पाजी। इस विषय का उल्लेख भी मेरे सामने न करो, मुझे सोच-विचार करने के लिए प्रेरणा भी मत दो। तुम्हारे हाथों में राष्ट्र सुरक्षित है, दिया I यही मेरे लिए पर्याप्त है।" बल्लाल ने अपना निर्णय सुना
पद्मलदेवी का व्यवहार शारीरिक तृप्ति तक सीमित हो गया। शेष सब बातें उसे गौण थीं। बल्लाल का जीवन यान्त्रिक बन गया था। पद्मलदेवी के लिए यह
3746 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो