________________
नये महाराज के सिंहासनारूढ़ होने के वर्ष के अन्दर ही पुत्रोत्सव होने से ज्योतिषियों ने राष्ट्र-विस्तार के लिए इसे शुभसूचक सगुन और राष्ट्र-विस्तार की पूर्व सूचना बताया।
नामकरण संस्कार भी बड़े धूमधाम से मनाया गया। मरियाने दण्डनायक के पास आमन्त्रणपत्र भेजा गया था तो भी ये नहीं आये। पद्मलदेवी को इस उत्सव में भागी होने की इच्छा नहीं रही, न ही इसे ईर्ष्या के कारण सह सकी थी। चामलदेवी और बोप्पदवी दीदी के कारण सिन्दगैरे को न छोड़ सकी थीं। यों उनमें से कोई नहीं आया।
नामल" मा हो र एर चर्चा हुई : लिवन्द की मलय शी कि शिशु का नाम विनयादित्य रखा जाय। मारसिंगय्या और माचिकव्ये की यह सूचना रही कि अपने प्रिय प्रभु के नाम से ही अभिहित किया जाय । शान्तलदेवी ने कहा
“सन्निधान के अग्रज वेलापुरी छोड़ दोरसमुद्र में रहने ही इच्छा नहीं रखते थे। कारणवश वहाँ जाकर वहीं रहकर प्राण देने पर भी, उनका मन वेलापुरी से ही अधिक लगाव रख रहा था। अकाल मृत्यु के कारण ये हमसे बिछुड़ गये तो भी उनकी स्मृति हम सबके लिए हितकर है। वह अपने पुत्र को विनयादित्य के नाम से अभिहित करना चाह रहे थे, परन्तु सफल न हो सके। विनयादित्य कहकर अभिधान करने पर बुजुर्गों के नाम से अभिहित करने की उनकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी। वही करेंगे।"
एचलदेवी ने कहा, "शान्तलदेवी की इच्छा उचित लगती है।"
एक शुभ मुहूर्त में शिशु का नामकरण संस्कार सम्पन्न हुआ। शिशु का नाम विनयादित्य रखा गया।
इस नामकरण महोत्सव में उपस्थित सभी लोगों ने एक कण्ठ हो योषित किया, “चिरमभिवर्धतां पोसलसन्तानश्रीः, माता-पित्रो शिशोश्व दीर्घायुरारोग्यप्राप्तिरस्तु, ऐश्वयंप्राप्तिरस्तु, देशकोशमभिवृद्धिरस्तु।"
सन्तान किसे हो, किस तरह की हो, कब हो-इस स्वार्थ के कारण एक बहुत बड़ी घटना ही यट चकी थी। अब राजमहल में किसी तरह के असमाधान के विना, किसी तरह की दर्द भरी घटना के बिना, किसी तरह की व्यंग्योंक्तियों के बिना, पुत्रोत्सव का यह समारम्भ प्रगति-सूचक रूप में सुसम्पन्न हुआ।
आस्थान-ऋधि अभिनव पम्प नागचन्द्र और आस्थान कर्वायत्री कन्तिदेवी दोनों ही वेलापुरी आ गये थे। वास्तव में कन्तिदेवी निवृत होना चाहती थीं। लेकिन तुरन्त पूछने पर अन्यथा समझे जाने की आशंका के कारण वह वेलापुरी आ गयी थीं।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 39]