Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 436
________________ शान्तला भी उठ खड़े हुए। "देवी वासन्तिका आप लोगों की रक्षा करें। मन की बात मन ही में रखकर घुलने के बदले, कहकर मन का भार उतार लेना अच्छा है। इसलिए जो कहना था, कह दिया। अब निर्णय आप ही लोगों पर छोड़ देती हूँ।' कह प्रचलदेवी अपने प्रकोष्ठ की ओर कदम बढ़ाने लगी। रविमय्या ने किवाड़ खोला। इयोढ़ी पर ठहरकर एचलदेवी ने कहा, "रंबिमय्या, तम्हें जब फुरसत हो तब थोड़ी देर के लिए आ जाना।' बह चली गयीं। रेबिमय्या ने राजदम्पती की ओर देखा। . भाननदेवी ने कहा, "मी मा रेमिया " वह दरवाजा बन्द करके चला गया। राजदम्पती बैठे रहे। बिट्टिदेव ने पूछा, और क्या-क्या चातें होती रहीं।" शान्तलदेवी ने सब बता दिया। "तुरन्त उत्तर न देकर मौन क्यों रहीं?' बिट्टिदेव ने सवाल किया। ""महामातृश्री के लिए मेरा सम्पूर्ण जीवन घरोहर होना चाहिए। उनकी उदारता के लिए और क्या भेंट किया जा सकता है? वे वास्तव में बहुत सूक्ष्म-मति हैं। इससे भी बढ़कर ये बड़ी संयमी हैं। वे मुझसे जिस तरह के व्यवहार की अपेक्षा करती हैं तुरन्त मुझे वैसा ही बरतना चाहिए। यह मेरा कर्तव्य है। वे मुझे ऐसा करने की आज्ञा दे सकती थी। आज्ञा न देकर बलिपुर की स्पर्धा की बात को सामने प्रस्तुत करके मेरे बर्ताव में औदार्य की अपेक्षा रखीं। अभी हम उनके उस स्तर तक पहुँचे नहीं। इसीलिए सन्दिग्ध स्थिति में तथा स्वार्थ में पड़कर मैं कुछ बोलने में असपथं हो गयी।" शान्नलदेवी बोली। "तो क्या देवी इस विषय पर पुनर्विचार करने की सोच रही हैं." "यह उचित मालूम पड़ता है। रेविमय्या को आने दीजिए। बाद में मैं अपनी राय बताऊंगी।" "टोक है। तब तक बाको सन्त्र कार्य, अब जैसा निर्णय हुआ है, आगे बढ़ता रहेगा। इस बीच मंचिंदण्डनाथ ने जैसी सताह दी थी, उसके अनुसार, हमारे अश्यों के लिए लौह-कवच, शिरस्त्राण आदि तैयार कराने का कार्य हुआ या नहीं! इस कार्य के निरीक्षण एवं परीक्षण की सूचना बम्मलदेवी को दे दी गयी है न?'' बिट्टिदेव ने पूछा। 'हाँ, वे तमी शस्त्रास्त्र-निर्माण केन्द्र की ओर चली गयी थीं। उनके लौटते ही मुझे बता देने की सूचना नौकर को दी जा चुकी है। मंचिदण्डनाथ से एक और सूचना मिली है..." बिट्टिदेव ने बात वहीं रोक दी। "क्या है वह?" 440 :: पमहादेवी शान्तता : भाग दो

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