Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 452
________________ हैं। चट्टला पहले ही शत्रु-सेना का रहस्य न बतलाती तो आज मैं इस गौरव का । पात्र नहीं बनती। सन्निधान को बचाने का सौभाग्य भगवान ने मुझे दिया, इतने से मैं सन्तुष्ट हूँ। शायद यह किसी पूर्वजन्म का सम्बन्ध रहा हो। इससे मुझे कृतकृत्य होने की तृप्ति मिली हैं। इसमें वैयक्तिक श्रद्धा ने अपना कर्तव्य निभाया है। वह प्रकारान्तर से राष्ट्रनिष्ठा भी हो सकती है। इसे और अधिक कहना उचित नहीं है। हम आश्रय की मांग लेकर आये, हमें इस राज्य ने आश्रय दिया। हमें अपना बनाया। मेरा सम्पूर्ण जीवन सन्निधान की सेवा के लिए धरोहर हैं। मैं इस धरोहर को सन्निधान की सेवा में अर्पण कर सकँ, भगवान मुझ पर इतनी कृपा करें। मेरी भगवान से यही प्रार्थना है। इन बातों के साथ सन्निधान और पट्टमहादंवी को कृतज्ञतापूर्ण प्रणाम समर्पित करती हूँ। यह आसन्दी पाँच सो परगना जो भेंट में प्राप्त हैं वह जैसा है वैसा ही रहेगा। निमिनमात्र के लिए मेरा नाम जुड़ा होगा। मैं सन्निधान के साथ रह सकें, इतनी कृपा हो।" कहकर वह बैठ गयी। इतने में एक हरकार ने आकर उदयादित्य से इशारे से कुछ कहा । उदयादित्य ने भी इशार से ही कहा, "ठीक हैं, तुम जाओ।" और उठ खड़ा हुआ, बोला, "हमन सोचा कि इस समारोह के अवसर पर कुछ मनोरंजन का भी कार्यक्रम हो तो अच्छा । इस यादवपुरी में कोई उन्नत शिक्षणप्राप्त नर्तकी नहीं मिल रही है। हम सोच ही रहे थे कि मनोरंजन का कार्यक्रम कैसे हो कि इतने में आलुप राज्य की तरफ से एक नर्तकी के वहाँ आने की खबर मिली। सुना कि वह मतंकी सन्निधान के सामने अपनी नर्तनकला का प्रदर्शन करना चाहती है। उसने अपनी अभिलाषा प्रकट करते हुए इस आशय की प्रार्थना भी की, इसलिए उसके नृत्य-प्रदर्शन की व्यवस्था मैंने की है। उम्र अभी छोटी है। फिर भी सुनते हैं कि अच्छी शिक्षा पायी हैं। इसके लिए सन्निधान की अनुमति चाहता हूँ।'' अनुमति मिल गयी। नतंकी अपने वाद्यवृन्द के साथ प्रस्तुत हुई। अपने नाट्य से उसने सभासदों को चकित कर दिया। शान्तलदेवी भी चकित होकर उस नाट्य को देखती रहीं। बीच में एक बार महाराज की तरफ़ झुककर बोली, "पता नहीं, कहाँ, इस नर्तकी को देखा-सा जान पड़ता है।" मझें भी यह चेहरा परिचित-सा लगता है। कौन है, कहाँ देखा, यह सूझ नहीं रहा है।' बिट्टिदेव ने कहा। 'नृत्य की गति, पदचाप, मुद्रा की रीति, भंगिमा-यह सब बलिपुर के सम्प्रदाय की-सी ही लगती है। आलुप राज्य में यह बलिपुर का सम्प्रदाय कैसे पहुँचा होगा?' शान्ताला ने जिज्ञासा की। "बाद में बुलवाकर दयाफ़्त करेंगे। वह जो भी हो, नृत्य हमें बहुत अच्छा 45t :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो

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