Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 455
________________ के साथ कहा, "ओह, तुम? तुम ही; पता ही न लगा कि तुम हो । बात जात बता देती है। स्त्री होकर भी मैं खुद समझती रही कि तुम लड़की ही हो ।' “मतलब क्या है?" बिट्टिदेव ने आश्चर्य प्रकट किया। “यह वहीं, हमारा कुमार बिविण्णा । स्त्री के वेश में सुन्दर षोडसी जैसा लग रहा है। है न?" शान्तलदेवी ने कहा । वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने चकित दृष्टि से नर्तकी के वेषधारी कुमार की ओर पिट्टियण नकाशन : . | उसके हाथ और वह व्याप्त पदकवाला हार-एक क्षण ज्यों-के-त्यों रहे आये। "वह साधारण नहीं; बहुत बड़ी साधना की उपलब्धि है।' कहती हुई शान्तलदेवी ने उठकर उस हार को अपने हाथ में लेकर कहा, "कला में अपने शिष्य की इस महान सिद्धि को देखकर गुरु यह उपहार शिष्य को दे रही है। ली, आगे बढ़ाओ अपनी ग्रीवा ।'' बिट्टियाणा ने दो कदम पीछे हटकर कहा, 'यह तो दत्तोपहार होगा। और फिर पोयसल लांछन से वक्त यह कण्ठहार वीरों के गले में शोभा देगा। मझ जैसे के गले में नहीं। अब की विजय, पट्टमहादेवी के यद्ध-तन्त्र की बुद्धिमत्ता से, और पल्लव राजकुमारी बम्मलदेवी के सन्निधान की प्राणरक्षा के साहसपूर्ण कार्य से हुई हैं। शस्त्रास्त्र विद्या में वर्षों से शिक्षा देने पर भी हमें युद्धक्षेत्र में न ले जाकर, केवल विजयोत्सव में नृत्य के ही लिए जब सुरक्षित रखा है तब मेरी गुरुवर्या श्री श्री अनिपात प्र . . .. la ...पा .-411 उभयक्रम नृत्य-प्रवीण-संगीत सरस्वती, रणकार्य में निपुण पट्टमहादेवीजी को ही यह गुरुदक्षिणा स्वीकार्य होनी चाहिए। यही न्यायसंगत है। यह सन्निधान की आज्ञा भी है। इस अवसर पर मेरी दो प्रार्थना है। उन्हें निवेदन करने के लिए मुझे बादव ने कहा, “पमहादयान कृपया बट जाए। आगे क्या होगा इसकी प्रतीक्षा सभासद कुतूहल से करने लगे। शान्तलदेवी उस कण्ठपाला को हाथ में ही लिये बैठ गयीं। विट्टिदेव ने बिटियणा की ओर मुड़कर कहा, ''हाँ, अब कहो।" ''इस तरह केवल नृत्य के लिए मुझे सुरक्षित न रखकर मेरे पिता विण्णम दण्डनाथ की एवं मेरी जन्मदात्री माँ चन्दब्बेजी की मृत्यु समय की इच्छा को पूरा करने एवं पोयसल राज्य की रक्षा और उसकी प्रगति के ही लिए मैं अपना जीवन अर्पित कर सकूँ-यह अनुग्रह करें। स्वर्गवासी मेरे माता-पिता, अपना यह बेटा बाह-विन्यास का उपयोग युद्धक्षेत्र में न कर नाट्य-मुद्रा प्रदर्शन में कर रहा है, यह समझकर दुःखी न होवें। आप ही लोगों ने मेरे पूज्य पिता की निष्ठा और पराक्रम के विषय में घण्टौं वर्णन करके मुझे प्रोत्साहित किया है। गत युद्ध के समय ही यद्रमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 459

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